*अध्यात्म ज्योति :* अंक 1 ,वर्ष 55, प्रयागराज जनवरी – अप्रैल 2022
अध्यात्म ज्योति : अंक 1 ,वर्ष 55, प्रयागराज जनवरी – अप्रैल 2022
संपादिका : ज्ञान कुमारी अजीत एवं डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव
संपादन कार्यालय : श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत 61 टैगोर टाउन ,इलाहाबाद 211002 फोन 99369 17406
डॉ सुषमा श्रीवास्तव f 9 सी ब्लॉक तुल्सियानी एंक्लेव ,लाउदर रोड ,इलाहाबाद 211002 फोन 94518 43915
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समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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“अध्यात्म ज्योति” जैसा कि पत्रिका के आरंभ में ही इंगित है ,वास्तव में राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रतिनिधि थियोसॉफिकल पत्रिका है । “सत्यान्नास्ति परो धर्म ः “यह जो थियोस्फी का उपदेश-वाक्य है ,इसे पत्रिका ने आरंभ में ही अंकित किया हुआ है।
अच्छे लेख इस अंक में हैं। संपादकीय “उदयाचल” शीर्षक से हमेशा की तरह इस बार भी प्रेरणादायक है । स्वास्थ्य की दृष्टि से केवल आहार-विहार ही नहीं अपितु मनोभावों की शुद्धता भी आवश्यक है, इस बात को संपादकीय लेख रेखांकित कर रहा है । डॉ सुषमा श्रीवास्तव के कथनानुसार “प्रसन्नता एवं स्वास्थ्य को हम अपने मानसिक एवं भावनात्मक आवेशों को संतुलित करके प्राप्त कर सकते हैं ।” (पृष्ठ 4)
महत्वपूर्ण बात इस संपादकीय में यह है कि “अवचेतन मन की क्रिया का क्षेत्र चेतन मन से 5 गुना अधिक होता है” इसलिए हमें अवचेतन मन के क्रियाकलापों को सकारात्मकता से ओतप्रोत करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
पत्रिका में अच्छे विचारकों के लेखों का अनुवाद भी है । ऐसा ही एक अनुवाद रिकार्डो लिंडेमेन द्वारा लिखित “थियोसॉफिकल कार्य और उसका प्रशिक्षण” है। लेख का अनुवाद श्री पी एस मित्तल के द्वारा प्रस्तुत है । इसमें डॉक्टर तैमिनी की पुस्तक “प्रिंसिपल ऑफ थियोस्फी” के संबंध में विश्लेषण है । तैमिनी के अनुसार “हमको संसार में ऐसे कार्यकर्ताओं को तैयार करना है जो देवीय योजना को सामान्य रूप से समझें और सचेतन रूप से गुरुओं के कार्यों में सहयोग कर सकें “। (पृष्ठ सात)
इसके लिए विद्वान लेखक ने ब्राजील का उदाहरण दिया है जहाँ नए सदस्यों को डिप्लोमा के साथ आई. के. तैमिनी की पुस्तक “प्रिंसिपल ऑफ थियोस्फी” दी जाती है ।(पृष्ठ 9 )
लेखक का मत है कि हमारा काम केवल सदस्यों से वार्षिक चंदा एकत्र करना तथा दैनिक क्रियाकलाप जैसे अभिलेखों का रखरखाव आदि ही नहीं है।( प्रष्ठ 10)
“निर्ममता रोगों का कारण है”- यह संपादकीय के विचार-क्रम के अनुसरण में ही लिखा गया एक लेख है ,जो जाफरी हडसन द्वारा लिखित है । इसका अनुवाद डॉ सुषमा श्रीवास्तव ने किया है । लेख बताता है कि “जहाँ समरसता होती है ,वहाँ स्वास्थ्य सुनिश्चित है । दीर्घकालीन आंतरिक वैमनस्य अंततः रोग पैदा करना करता है।” ( पृष्ठ 15)
लेखक के अनुसार स्वस्थ मनुष्य का निर्माण तभी होगा जब हमारा व्यवहार चेतना पूर्ण होगा और मानवीयता जीवन का ध्येय हो जाएगा । अंत में लेख कहता है कि “इस प्रकार समाज और व्यक्ति के द्वारा की गई निष्ठुरता ही रोग का कारण है ।”(प्रष्ठ 18 – 19)
वी.वी. चलम द्वारा लिखित “सहनशीलता समय की आवश्यकता है” एक महत्वपूर्ण लेख है । इसका अनुवाद डॉ. वंदना श्रीवास्तव ने किया है। इस लेख का आरंभ डॉक्टर एनी बेसेंट द्वारा लिखित उस प्रार्थना से है जिसे थियोस्फी के प्रत्येक आयोजन में सर्वप्रथम दोहराया जाता है । किंतु लेखक प्रश्न करते हैं “क्या हम इस प्रार्थना को यंत्रवत दोहराते हैं ? क्या हम अपने हृदय में गुप्त-प्राण का अनुभव करते हैं ? अगर नहीं तो क्यों नहीं ?” (पृष्ठ 23)
लेखक के अनुसार यदि हम विश्व बंधुत्व या सहनशीलता का भाव नहीं अपनाएँगे तो मानवता के सुंदर भविष्य की कोई संभावना नहीं है ।(पृष्ठ 24)
प्रदीप तलवालकर द्वारा लिखित “शत्रु और मित्र” लेख का अनुवाद श्री हरिओम अग्रवाल ,रामपुर द्वारा किया गया है। श्री हरिओम अग्रवाल थियोस्फी के समर्पित साधक रहे हैं । उनके अनुवाद अनेक दशकों से सराहे जाते रहे हैं । लेख में प्रदीप तलवखलकर ने इस बात को रेखांकित किया है कि “दृष्टा भाव की प्रवृत्ति मन-मस्तिष्क की हलचल को शांत रखती है “। यह कर्ता भाव और भोक्ता भाव से हटकर जीवन के प्रति अपनाए जाने वाली दृष्टि है।( पृष्ठ 27)
पत्रिका में व्यक्ति के पुनरुत्थान के संबंध में जिज्ञासा ,मानसिक स्वास्थ्य एवं थियोस्फी आदि महत्वपूर्ण लेख पत्रिका को समृद्ध कर रहे हैं थियोसॉफी-जगत के क्रियाकलापों पर अंत में प्रकाश डाला गया है । “स्मृति-शेष सरस्वती नारायण” तथा सुविख्यात पत्रकार प्रीवियस दत्ता के संबंध में “एक सच्चे थियोसॉफिस्ट का निधन” शीर्षक से अर्पित की गई श्रद्धांजलि संपादिका ज्ञान कुमारी अजीत की सुदीर्घ साधनामय लेखनी से ही निःस्त्रत हो सकती है । पत्रिका का विशेष आकर्षण हिंदी भाषा को माँ मानते हुए “माँ के आँसू” शीर्षक से एक मार्मिक कविता का प्रस्तुतीकरण है । इस पर कवि का नाम अंकित नहीं है । 40 पृष्ठ की पत्रिका थियोसॉफिकल सोसायटी के उद्देश्यों के प्रचार और प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान कही जा सकती है।