अध्यात्म के नाम से,
अध्यात्म के नाम से, वैभव के भंडार
समझ सके तो समझ ले, ये दौलत व्यापार ||
कथा कहें या ज्ञान हो ,सबका यही विचार
मीठे मीठे बोल हैं , प्रेम बना औजार ||
भुत प्रेत वाधा सभी , लगते हैं दरबार
सेवा फल के भाव से, युवा करें बेकार ||
ऊंचा महल चमक रहा, भक्त रहें लाचार
वैभव विलास में सने , पड़े भक्त पर मार ||
जो बोले जो वेवफ़ा, लगता है आरोप ||
और बड़े फिर बात तो, हो जाता है क्रोप
हर तरफ एक शोर है , कुर्सी जिंदाबाद
आग लगे तो सब जले ,बस हम हो आबाद ||
दान ध्यान उपदेश दें , उपदेशों के सर्ग
स्वार्थ की चक्की लगी, पिस्ता मध्यम वर्ग ||
झगड़े के कारण तीन, जर जोरू औ जमीन
छीना छीन दौलत की, न मजहब न ही दीन , ||