||अधूरे ख्वाब ||
“एक ख्वाब लिए आखों में
जिन्दा पुतले ढल जाते है
पुरे करने को हर ख्वाब हमारे
रह जाते है खुद के ख्वाब अधूरे
बसती है ख्वाबों की एक दुनिया फिर से
जीती है हासिल करने को मंजिल अपनी
पर क्या ख्वाब कभी पुरे हो पाये
उम्र गुजर जाती है अपनी
की मंजिल तक इसको ले जाये
ख्वाबो को लेके उठते हम प्रतिदिन
और ख्वाबों के संग सो जाते है
पुरे करते-करते ख्वाब दुसरो के
बनके ख्वाब खुद हम रह जाते है
तकलीफ ना होती कभी भी इससे
जिसे हासिल करने को हमने
दिन रात दौड़ लगायी है
क्या किया है तुमने जीवन में ?
ये प्रश्न कभी जब हमपे उठते है
फट जाता है दिल ,बिखर जाते है अरमा
रगों में बहते रक्त भी तब पानी से हो जाते है |”