अधूरे ख्वाब
अभी तलक तो सभी ख्वाब हैं अधूरे ,
खुदा जाने ! कब होंगे या नहीं होगे पूरे ।
गहरा सागर और पतवार है टूटी हुई ,
लेकिन दूर बहुत ही दूर हैं किनारे।
अभी तलक एक भी अरमान पूरा न हुआ,
जो पोशीदा है तसव्वुर ए ज़हन में हमारे ।
तकदीर हमारे दरम्यां दीवार बनकर खड़ी है,
बड़े गुस्ताख है उसके हमारी ओर इशारे ।
वक्त का कारवां है की बढ़ता ही जा रहा है,
कदम से कदम मिला के चलें किसके सहारे?
कोई हमनवा ,हमराही और हमदर्द भी नही ,
खो चुके है हमारी जिंदगी को सभी सहारे ।
अब तो जिंदगी की शाम होने जा रही हैं”अनु” ,
अब समेत समेट भी ले अपने अरमान सारे ।