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26 Jan 2017 · 1 min read

अधूरे ख्वाब

अपनी मायूसी छिपाने के लिये,
हंसी चेहरे पर दिखाता रहा ।
दिल पर चोटें लगी बहुत,
मगर जख्मों को छिपाता रहा ।।

रोशनी से डर जाता हूं मैं अक्सर,
इसलिये अंधेरों में रहा करता हूं ।
तन्हाई में जीता रहा हूं अब तक,
इसलिये महफिल में जाने से डरता हूं ।।

बादलों का गर्जना ही काफी नहीं होता,
उनका बरसना भी लाज़मी है ।
ख्वाब मुकम्मल नहीं होते कभी,
उसके लिये तरसना ही पड़ता है ।।

ख्वाबों को पूरा होते हुये,
सिर्फ किताबों में ही देखा है ।
हकीकत मे तो ख्वाबों को बस,
सिर्फ उधड़ते ही देखा है ।।

कवि संजय गुप्ता (सिंगला)
मोगीनन्द,नाहन ।
जिला सिरमौर,(हि०प्र०)
मोबाइल 9882521555

Language: Hindi
329 Views
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