अधूरी हसरतें
खलिश मन की ,जो हसरतें अधूरी थी।
ऐसी बातें जो तुमसे करना ज़रूरी थी।
वास्ता दिया खुदा का,मगर वो न बोले
समझते कैसे,आखिर क्या मजबूरी थी।
उसने देखा न मुड़ कर ,कभी मेरी जानिब,
दो कदम न चल पाये,ऐसी भी क्या दूरी थी।
गैरों की टांगें काट,कद उसने ऊंचा किया
उसपे खूबी ,लहज़े में उसके जी हजूरी थी।
तलाश करता रहा वो , इश्क की महक की
सीने में उसके ही,दबी वो कस्तूरी थी।
सुरिंदर कौर