अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ६
अधूरी सी कहानी तेरी मेरी – भाग ६
गतांक से से …………
समय की मंद मुस्कान जल्द ही एक और मनमोहक घटना की गवाह बनने वाली थी | छाते वाली घटना सोहित के दिल में उथल पुथल मचाये हुए थी | वो सोच सोच कर परेशान था आखिर क्या मतलब हो सकता है इसका | तुलसी का दिल भी मचल रहा था | सोहित ने उसके दिल जगह बना ली थी | वो सोहित को चाहने लगी थी | मगर वो सोहित पर जाहिर नहीं होने देना चाहती थी | नंबर तो तुलसी के भी पास सोहित का आ चुका था मगर वो उसको फ़ोन नहीं कर रही थी | अन्दर ही अन्दर बेचैन थी मगर नारी सुलभ लज्जा से भरी हुई भी थी | फिर वो आगे बढ़कर पहल कैसे करती ?
जून और जुलाई भी में इन्तजार, शर्म, लिहाज और थोड़ी बरसात में निकल गए | अगस्त के महीने में भी कार्यक्रम यथावत चल रहा था कि एक दिन सोहित घर से सर्वे जाने के लिए निकला ही था कि थोड़ी दूर जाकर बरसात आ गयी | पहले तो हलकी फुहार आयी फिर धीरे धीरे तेज बारिश में बदल गयी | हलकी बारिश में सोहित चलता रहा किन्तु जब बारिश तेज हुई तो छुपने के लिए कोई जगह न मिलने के कारण पूरा भीग गया | भीगने के बाद उसने रुकना उचित नहीं समझा और वो कार्यक्षेत्र में पहुँच गया | चूंकि वो देर से पहुंचा था तो सबसे पहले तुलसी और चाची की टीम को ही चेक करने पहुँच गया और काम शुरू करने से पहले उनको ढूँढा | सोहित को देखते ही सबसे पहले उसने सोहित के सर पर छाता लगाया और बोली :
तुलसी : अरे सर आप तो पूरे भीग गए ! आप छाता भी लेकर नहीं आये |
सोहित : बाइक पर छाता कौन पकड़ कर बैठता ? और वैसे भी मुझे छाता लेकर चलना पसंद नहीं है |
तुलसी : तो अब आप काम कैसे करोगे |
सोहित : ऐसे ही कर लूँगा | और देखो मैं तो पूरा भीग ही गया हूँ, मेरे ऊपर छाता लगाने से कोई फायेदा तो है नहीं | तुम्हारा छाता बहुत बड़ा है, मुझे बचाने के चक्कर में तुम भी भीग जाओगी और तुम्हारी तबियत भी ख़राब हो जायेगी |
तुलसी : आप पूरा दिन गीले कपड़ों में काम करोगे तो आप बीमार नहीं होगे क्या ? कुछ रेनकोट वगेरह तो लेकर ही चलते |
सोहित : मुझे तो ऐसे बारिश में भीगने की आदत है मैं अक्सर बरसात में ऐसे ही भीग जाता हूँ | और बरसात में बाइक चलाने में तो अलग ही मजा आता है |
तुलसी : भीगते रहो फिर, लेकिन पहले रिपोर्ट देख लो और हस्ताक्षर कर दो |
गुस्से में सोहित के सर के ऊपर से छाता हटा लिया और दूसरी तरफ को चली गयी |
सोहित : आप तो नाराज हो गयी | मुझे कुछ नहीं होगा, आज मैं जल्द ही घर चला जाऊँगा, आप परेशान न हों |
सोहित ने उनकी रिपोर्ट पर सिग्नेचर किये और कुछ घरों के नंबर नोट करके ले गया | जो घर नोट किये थे बस वहीँ पर विजिट किया और रिपोर्ट तैयार कर दी |
जब सोहित वहां से निकला, तो तुलसी के आज के व्यवहार के बारे में सोचने लगा | वो सोच रहा था कि मेरे बारिश में भीगने पर तुलसी इतना गुस्सा क्यों कर रही है | क्या वाकई में इसके मन में भी कुछ है या फिर बस ऐसे ही | या फिर सभी के लिए ही इतनी केयरिंग है | कुछ भी समझ नहीं आ रहा था सोहित के | आखिर वो कैसे इस बात को स्पष्ट करे | उलझनें बढती जा रही थी लेकिन कोई समाधान सुझाई नहीं दे रहा था | एक तो सोहित वैसे ही लड़कियों से व्यक्तिगत बात करने से झिझकता था दूसरी झिझक उसके काम को लेकर थी | अगर मैं उसको कुछ कहता हूँ और वो इनकार कर देती है तो क्या क्या सोचेगी और अगर ये बात औरों को बताई तो सब उसके बारे में क्या क्या सोचेंगे ?
तुलसी अब अक्सर अपनी दीदी से सोहित के बारे में बातें करने लगी थी | दीदी हर बार उसको बात करने के लिए कहती लेकिन तुलसी हर बार उनको एक ही बात कह के टाल देती कि उसके पास भी तो मेरा नंबर है, अगर वो लड़का होकर मुझे कॉल नहीं कर सकता तो मैं लड़की होकर उसको पहले कॉल क्यों करूँ ? जिस पर दीदी कहती तो फिर तुम मुझसे उसकी इतनी बातें क्यों करती हो ? लाओ उसका नंबर मुझे दो, मैं बात करती हूँ उससे | मगर तुलसी इसके लिए भी इनकार कर देती |
सोहित ने ये बात किसी से शेयर नहीं की थी | उसके मन में तुलसी को फ़ोन करने को लेकर बहुत झिझक थी | उसने कई बात तुलसी का नंबर डायल करने के लिए निकाला लेकिन फिर कैंसिल कर दिया | इस प्रकार न जाने कितनी ही बार फ़ोन भी सोहित की इस उलझन का गवाह बना | इस बीच तुलसी के शहर में भारी बाढ़ के चलते तुलसी के शहर को जाने वाले रास्ते का पुल बह गया | तुलसी का घर भी इस बाढ़ में फंस गया था | उसके घर में भी बाढ़ का पानी घुस गया था और थोडा बहुत घर के सामान का नुक्सान हुआ था | बाढ़ का शिकार तुलसी का ऑफिस भी हुआ था | उसकी सभी फाइल्स पानी में भीग कर खराब हो गयी थी |
अगले तीन महीने तक सोहित वहां नहीं जा पाया और न ही उसने तुलसी को कॉल की | सोहित ने कोशिश तो कई बार की लेकिन कॉल करने में सफल नहीं हो पाया | तुलसी भी सोहित को याद करती रही मगर उसने भी सोहित को फ़ोन नहीं किया | बस सोहित के फ़ोन का इन्तजार करती रही और सोहित के साथ हुई बातों को ही याद करती रही |
ये इन्तजार भी दोनों की इंतजारी का लुत्फ़ उठा रहा था और दोनों की कश्मकश को भी खूब बढ़ा रहा | दोनों के दिल बातें कर रहे थे मगर लब खामोश थे | हाथ मचल रहे थे एक दूजे को आगोश में लेने को मगर कुछ था जो उन दोनों को रोक रहा था |
हम भी इस इन्तजार में शामिल हो जाते हैं और करते हैं इन्तजार सोहित और तुलसी के फिर से लौटकर आने का …………….
क्रमशः
सन्दीप कुमार
२९.०७.२०१६