अधूरी रह गईं हसरतें..
मुझे कोई नशा नहीं है तेरा, गुजरा बिन तेरे भी चलता है ।
कसक क्यूँ मन में रहती है, बे-ग़ैरत नादान इस दिल को ।।
समझ पाया हूँ नहीं तुझको, या तू मुझे उलझा देती है।
रही हो लाख शिक़ायत भी, फ़िर भी न बिसरने पता हूँ ।।
रही न अब ख़्वाहिश जीने की, भुलाकर तुझको ए हमदम ।
न मैं क्यों मर भी पाता हूँ, क्या मरना भी मेरे बस में नहीं ।।
कुछ तो सोचा होगा तूने, भुलाने से पहले मुझको ।
वरना मेरे आशिक़ इस जहाँ में तेरी कोई लाचारी नहीं ।।
मोहब्बत गर तू करता मुझसे, कभी ना मुझे ग़ैर समझता ।
तेरे हर अश्क़ को ए सनम, समझ सुखः ख़ुशी से पी लेता ।।
ताउम्र रहेगा शिक़वा, जी न सका तेरे संग कुछ पल ।
अधूरी रह गईं हसरतें, तेरी जुल्फ़ों के साये में मिटने की ।।
“आघात” आज तुझको वेबफ़ा उसने कह दिया ।
जुबाँ से दो लफ्ज़ प्यार के, कभी न दिल से कह सका ।।
आर एस बौद्ध “आघात”
8475001921