अधूरी ग़ज़ल
है अगर मीर की जो ग़ज़ल तू कोई ,
मैं तुझे रात दिन गुनगुनाता रहा ।
तेरी आंखों का काजल जो ना बन सका ,
तेरे ख्वाबों में हर रोज आता रहा ।।
हो ना पाया अगर तेरा मेरा ज़हां ,
तेरी यादों से खुद को बचाता रहा ।
बात इतनी ही थी , तुमने समझी नहींं ,
बेवजह मैं तुमसे नजरें छुपाता रहा ।।