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10 Jun 2020 · 1 min read

अधूरी ग़ज़ल

है अगर मीर की जो ग़ज़ल तू कोई ,
मैं तुझे रात दिन गुनगुनाता रहा ।

तेरी आंखों का काजल जो ना बन सका ,
तेरे ख्वाबों में हर रोज आता रहा ।।

हो ना पाया अगर तेरा मेरा ज़हां ,
तेरी यादों से खुद को बचाता रहा ।

बात इतनी ही थी , तुमने समझी नहींं ,
बेवजह मैं तुमसे नजरें छुपाता रहा ।।

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