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27 Jun 2024 · 1 min read

अधूरी आस

अधूरी आस (धनुष वर्ण पिरामिड)

जो
कभी
न पूरी
हुयी कभी
आस अधूरी
मिलते मिलते
फिसल गयी वह
अब नहीँ मिलेगी
बाँह छुड़ा कर
भाग गयी है
निष्ठुर है
हृदय
नहीँ
है।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

1 Like · 12 Views
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