अधूरा सफ़र
न छोड़ो अभी यह अधूरा सफर है ।
मंजिल की थोड़ी कठिन रहगुजर है ।।
चले जो निरंतर वो कहते यही है ।
कि कदमो से छोटी रही ये डगर है ।।
हरे पत्तों से एक दिन यह भरेगा ।
भले आज दिखता जो सूखा शज़र है ।।
वो ऊंचा मकां है कलह का बसेरा ।
जहां अपने मिलजुल रहें वो ही घर है ।।
डरता वहीं है जो मरने से डरता ।
डरे मौत से ना वही तो निडर है ।।
गरीबों का प्यारा रहे जो जगत में ।
तो भगवान के दर उसी की कदर है ।।
जिसका हृदय गर कपट से भरा है ।
खाता वही ठोकरें दर बदर है ।।
मधुर प्रेम से दिन गुजरता है जिसका ।
सुखद नींद सोता वही रात भर है ।।