अधूरा सफर
आयोजन गद्य मेला
नाम- प्रवीणा त्रिवेदी
30/11/2021
शीर्षक- अधूरा सफर
सर्दियों की सुबह में हड्डियों में ठंड का प्रकोप कुछ अधिक ही हो रहा था।परन्तु देवेन के मन में तनिक भी आलस्य की छाया नहीं थी। धीरे धीरे चल कर गली के मोड़ पर स्थित चाय की दुकान पर जा बैठा। कुहरा भी अपनी जोर पर था लेकिन दुकान की दूसरी तरफ जलता हुआ अलाव आस पास के वातावरण में गर्माहट भर रहा था। चाय वाले ने आवाज दी कि साहब चाय….देवेन चाय का कप लिए पास की बेंच पर ही बैठ गया। कुछ लोग जो अलाव के पास बैठे हुए थे ,वे किसी न किसी बात पर बतिया रहे थे।
सर्दियों में अक्सर ही ऐसा होता है कि हर जगह लोग झुंड बनाकर और एक अलाव जलाकर बैठ जाते हैं और तरह तरह के विषयों पर अपनी अपनी राय अवश्य देते रहते हैं।
देवेन कड़कती ठंड में चाय की चुस्कियों को लेते हुए सोच रहा था कि जिंदगी इतनी नीरस कैसे हो जाती है।क्यों परिस्थितियां इतनी बेढब हो जाती हैं जिसमें आदमी अपने आपको असहाय महसूस करता है। शीतल तो बहुत ही अच्छी लड़की थी। 3 साल साथ साथ पढ़ने के साथ वे दोनों एकदूसरे के आकर्षण में बंध चुके थे। समय कब निकल गया मालूम न चला। फिर कालेज से विदाई का समय करीब आ गया था।इसके साथ ही सता रही थी जॉब की चिंता । क्यों कि देवेन तो अभी फ्रेशर ही था न। देवेन और शीतल के घर वाले भी दोनों की शादी के लिए राजी हो गए थे। क्यों कि देवेन एक स्मार्ट और अपने प्रति सजग रहने वाले लड़का था वह अपनी जम्मेदारी स्वयं उठा सकता था।इसीलिए दोनों परिवारों की आपसी सहमति बनाकर अपने बच्चों को शादी के बंधन में बाँध दिया था।
शीतल भी बहुत सुंदर और सुलझी हुई लड़की थी। अपनी सेहत और जिम्मेदारी के प्रति अधिक सजग थी। स्वाभिमान तो कूट कूट कर भरा था।
शादी के बाद के दिनसपनो,उमंगों,भावनाओं की उड़ानों में गुजरते चले गए थे । 2 साल गुजने के बाद अचानक ही दोनों के जीवन में बदलाव आने लगा था।अब दोनों के सम्बन्धों में कुछ रूखापन और आपसी मतभेद होने शुरू हो गए थे। देवेन को भी दूसरे शहर में अच्छी जॉब का ऑफर मिल गया था। इस बात को लेकर दोनों में कहासुनी हुई और मन मुटाव हुआ।शीतल अपने माँ बाप को छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहती थी।देवेन को जॉब का ऑफर ठुकराना मंजूर न था वह अपने बेटे की झोली में दुनियाँ की सारी खुशियाँ डाल देना चाहता था मगर उस दिन देवेन को जॉब के लिए उन दोनों को छोड़कर इस दूसरे शहर में आना पड़ा था।
अचानक चाय वाले की आवाज देवेन के कानों में पड़ी “और कुछ चाहिए साहब ,कहिए तो एक कप चाय और बना दूँ आज तो सर्दी ने कहर ढा रक्खा है साहब पता नहीं आज धूप देखने को मिलेगी भी या नहीं।”
देवेन ने अपनी
कैप को अपने कानों से नीचे की ओर खींचकर व्यवस्थित करते हुए कहा ..हाँ जी भाई एक कप और बना दे बहुत सर्दी है। ……..
प्रवीणा त्रिवेदी “प्रज्ञा”
नई दिल्ली 74