अधूरा मिलन
लाल जोड़े को पहनकर जा रही हो तुम गली से
है मुबारकबाद मेरी जिन्दगी खुशहाल रखना।
कर रहीं थी प्रेम पर तुम प्राण भी अपने समर्पण
फिर भला क्यों जा रही हो प्रेम अस्वीकार करके।
ख़्वाब ही नित सोचता, ये मन अभागा रह गया है
रो पड़े हैं नैन मेरे, आखिरी दीदार करके।
गीत का रह बंध फिर भी दे रहा तुमको बधाई,
नेह से निष्पक्ष होकर, तुम इसे स्वीकार करना।
लाल जोड़े को पहनकर जा रही तुम गली से
है मुबारकबाद मेरी जिन्दगी खुशहाल रखना।
बैठ डोली में गयीं तुम, डाल अवगुंठन नयन पर,
चल दिये हमको नज़र से आज फिर करके अपरचित।
तुम कुचलकर जा रही हो भावनाओं को हमारी,
पर तुम्हें क्या दोष दें! विधि के रहे निर्णय अकल्पित।
भाग्यरेखा में हमारी था मिलन शायद अधूरा,
इसलिए प्रिय पास होकर भी पड़ा हमको बिछड़ना।
लाल जोड़े को पहनकर जा रही तुम गली से
है मुबारकबाद मेरी जिन्दगी खुशहाल रखना।
रह गए हैं अर्ध ही अध्याय सारे पटकथा के,
इस कथा का तुम अहम किरदार लेकर जा रही हो।
यह प्रणय सौगात कैसी! सौंपकर हमको विरह तुम,
खींचकर मृदु कंठ से उद्गार लेकर जा रही हो।
स्वयं ही तुमने चुना है हमसफ़र फिर जिन्दगी का,
कर रहा उम्मीद, तुमसे अब वफ़ा की नींव धरना।
लाल जोड़े को पहनकर जा रही तुम गली से
है मुबारकबाद मेरी जिन्दगी खुशहाल रखना।
©अभिनव मिश्र अदम्य