अधूरा प्रेम
********अधूरा ख्वाब************
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मैं अभागा तुम्हें चाह कर भी पा ना सका
दिल में तुम्हारे कभी घर बना ना सका
महकते फूलों पर भंवरा मंडराता ही रहा
प्रेम रस का घूंट कभी लगा ही ना सका
रग रग में मेरी खुशबू सी समा गई थी तुम
तुम मेरी हो मैं तुम्हें ये कभी बता ना सका
भटकता रहा जोगी सा तेरी प्रेमगलियों में
प्रेम गली में तेरे घर का पता लगा ना सका
दूर से निहारता रहा अनछुआ रूप सौन्दर्य
नजरों से देखता रहा पास बुला ना सका
सावन मास प्रेम का सूखा ही बीत गया
बाहों में ले कर तुम्हें झूले मैं झूला ना सका
अप्सरा सी सुंदर तुम कभी निहार ना सका
होठों की लाली, कानों मैं बाली मुझे पसंद
निज हाथों से कानों में तेरे मैं पा ना सका
पसंद हूँ मैं तेरी कभी तुम्हीं से पूछ ना सका
तुम ही थे मंजिल, मंजिल को पा ना सका
सुखविंद्र यूँ ही तड़फता रहा कूंज बन कर
प्यासा रहा तेरे प्रेम का प्यास बुझा ना सका
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)