Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Feb 2021 · 5 min read

अधूरा पर पूर्ण प्यार

ना कवि ना कोई लेखक हूँ, पर कुछ पंक्ति लिख लेता हूं..
ना रस लोलूप भंवरे जैसा पर सौम्य कली लख लेता हूं..

जीवन का मार्ग अनिश्चित है, इसमें कुछ भी घट जाता है..
हृदय में मारुतसुत के रहते, मन को मन्मथ रट जाता है…

मैं भी जीवन में एक बार इस जीवन पथ से भटका था..
अनायश बासंती उपवन में एक कुसुमलता से लिपटा था..

वो कैसी थी किस जैसी थी मैं अब तक भी ना बता सका..
ना उसको अपलक देख सका ना उससे नजरें हटा सका…

उर्वशी ना कोई मैनका थी पर सुगढ़ सलोनी मूरत थी..
ना कोई अकड़ थी चेहरे पर ना बिल्कुल भोली सूरत थी..

ना जुल्फें उसकी श्याम घटा पर घुटनों को छू जाती थीं..
ना सरपिन जैसे बल खाती ना काया से चिप जाती थीं..

ना चंदा जैसी शीतल थी ना सूरज जैसी तपती थी…
ना थी वो वाचाल बहुत ना बिल्कुल गुमशुम रहती थी..

ना नयन तिरीछे कातिल थे पर वो आमंत्रित करते थे..
ना मुक्त तबस्सूम होठों पर, पर कुछ कहने स्पंदित थे..

न यौवन उभार इतने बोझिल की काया ही झुक झुक जाती..
ढकने में अक्षम बंध खोल कंचुकी ही साथ छोड़ जाती…

बारिश में पड़ती बूंदें भी छूने को होठ तरसती थीं..
यहां पर रुक खंड खंड होती फिर फुहार बन गिरती थीं…

सांसों के संग संग यौवन का हिलना प्रलयंकर लगता था..
क्षण क्षण में मौत शुलभ होती प्रतिक्षण में जीवन मिलता था…

हम भूल गए जीवन जीना मरना भी ना याद रहा..
देखा तो जीवन सरक गया ना देखा तो बर्बाद रहा..

मावस में चांद निकलता था जब जब वो छत पर आती..
सुबह खिड़कियां ना खोले तो वापस शाम ढूलक आती..

हर सुबह आईने के सम्मुख सजती नहीं सिर्फ संवरती थी..
गर मुझसे नजरें मिल जाती नजरों को फेर लरजती थी…

था होठों पर कुछ स्पंदन शायद आमंत्रित करती थी…
आंखें तो बातें करती थी पर खुद कहने से डरती थी…

उसके अंतर्मन भावों को पढ़ने की कोशिश करता था…
नित नए बहाने गढ़ मिलने की कोशिश करता था…

मैंने तो अनजाने में ही उसको मनमीत बनाया था…
जीवन के शांत सरोवर को खुद कंकर डाल हिलाया था..

उसको प्रस्तावित करने की मैं हिम्मत जुटा ना पाता था..
शायद वो ही सिग्नल देवे तकता टकटकी लगाता था…

दिन बीते महीने बीत गए पल पल गिन वर्षों बीत गई..
मेरी राहें तकते तकते उसकी भी अंखियां रीत गई…

फिर इक दिन साहस बटोर एक प्रेमपत्र लिख ही डाला…
अपने दिल मन और आत्मा को शब्दों के मनकों में ढाला..

हे प्रेम सखी, हे मृगनयनी, हे चित्त चोर, कोकिल वयनी..
चैन चोर, हे निद्रा अरि, हे मधुर स्वप्न, हे दिल दहनी…

किंकर्तव्य मूढ़ को गीता सी तुम पतित शिला की रामायण..
कातर पांचाली की पुकार, मेरे अश्वमेध की पारायण…

कुसुमित उपवन में गुलाब, सागर में कमल सुवासित सी…
बगिया में जूही सी खिलती आंगन में महकी तुलसी सी…

तुम से रोशन मेरी आंखे कानो में मधुर झंकार हो तुम…
होठों की मुस्कान मेरी जीवन व्याकरण में अलंकार हो तुम…

मेरे दिल की धड़कन हो तुम सांसों की आवक जावक हो…
डगमग होती मेरी नैया की तुम तारक हो तुम साधक हो…

तुम हो तो जीवन जीवन है ना हो तो मौत श्रेष्ठ लगती…
तुम बिन तो मन की मीत मेरी फागुन बेदर्द ज्येष्ठ लगती…

जिस रात स्वप्न में आती हो प्रातः फिर उठ नहीं पाता हूं…
जिस दिन भी तुम दिख जाती हो रातों में सो नहीं पाता हूं…

तुम बिन ये निश्चित मानो मै जीवित रह नहीं पाऊंगा…
गर नहीं मरा दीवाना सा दर दर की ठोकर खाऊंगा…

इसको केवल खत मत समझो ये भावों का गुलदस्ता है…
ख़्वाबों में जिसे उकेरा है तुझ संग जीवन का रस्ता है…

अगर स्वीकृती देदो तुम मै चांद तोड़ कर ला दूंगा…
फलक पलक पर रख दूंगा तारों से मांग सजा दूंगा…

तेरे एक इशारे पर मै अब कुछ भी कर सकता हूं…
तुम चाहो तो जी सकता हूं चाहो तो मर सकता हूं…

तुम मुझको समझ सको तो बस अपना सा कह देना…
मैं सागर सा स्थिर हूं तुम गंगा सी फिर बह देना…

गर ना चाहो तब प्रेम सखी तुम बस इतना सा करना…
मैं ऐसे ही खो जाऊंगा तुम एक इशारा बस करना…

ऐसा ही कुछ तोड़ मोड़ मैंने उस खत में लिख डाला…
भारत दिल के जज्बातों को शब्दों की माला में ढाला…

लिख पत्र मोड़ तरतीबों से रख दिया सुघड़ लिफाफे में…
जैसे इतराती मयूर पंख कान्हा के सर पर साफे में…

बढ़ती धड़कन, चलती हांफी उर पीकर हिम्मत की हाला…
कंपती टांगों से से तन साधे उसे नेह लेख पकड़ा डाला…

वो कहती कुछ या करे प्रश्न आता हूं कह कर निकल गया…
मरता मरता सा घबराता गिरता गिरता फिर संभल गया…

दिन सात तलक मेरी हिम्मत उससे मिलने की नहीं हुई…
वो बिगड़ेगी, ना बोलेगी हिम्मत सहने की नहीं हुई….

एक दिन सेंट्रल लाइब्रेरी में मेरी टेबिल पर आ बैठी…
मैं तो खुद घबराया था पर वो गुमशुम कुछ ना कहती…

बोली भारत जैसे भी हो, तुम रहना बस तुम वैसे ही…
मुझको तो अच्छे लगते हो जैसे भी हो तुम ऐसे ही…

पहले ही दिन से देख तुम्हें मैं तन मन की सुधि भूल गई…
तुम संग जीवन की गलियों के मोहक सपनों में झूल गई…

इन वर्षों में तुम बिन जीना इक पल भी मुमकिन नहीं लगा…
उर में धड़कन और सांस चलें तुम बिन ये संभव नहीं लगा…

पर नियति को नहीं सुहाता है मनमीत संग जीवन जिऐं…
प्यार से भी जरूरी कई काम है प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए…

पापा की लाडो बिटिया हूं मम्मा की राज दुलारी हूं…
भाई का रक्षा कवच पहिन दादी की गुड़िया प्यारी हूं…

गर हम दोनों मिल जाएंगे बाकी रिश्ते कट जाएंगे…
भाई तो क्या कर बैठेगा पापा जिंदा मर जाएंगे…

मां तो मां है बस रोएगी दादी का जाने क्या होगा…
ऐतबार ध्वस्त हो जाएगा सपनों का जाने क्या होगा…

मत तुम कमजोर करो मुझको निज विश्वास बचाने दो…
तुम बिन भी जिंदा रह लूं में ऐसा उर कवच बनाने दो…

मै कमतर हूं तुमसे दिलबर ना माफी के भी लायक हूं…
हो सके सखा तो करना क्षमा मैं दग्ध हृदय दुखदायक हूं…

ऐसी कुछ बातें कह कर के वो उठी पलट के चली गई…
मैंने वो बातें नहीं सुनी या सुनी रपट के चली गईं…

भारत में अब भी प्राण शेष ये सोच के अचरज होता है…
पर अब भी यार अंधेरे में दिल रोता है सुधि खोता है…

भारतेन्द्र शर्मा (भारत)
धौलपुर

29 Likes · 165 Comments · 936 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जहाँ करुणा दया प्रेम
जहाँ करुणा दया प्रेम
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
तड़फ रहा दिल हिज्र में तेरे
तड़फ रहा दिल हिज्र में तेरे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
ग़ज़ल
ग़ज़ल
विमला महरिया मौज
मुकेश का दीवाने
मुकेश का दीवाने
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
आखिर कब तक
आखिर कब तक
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
शब्द ब्रह्म अर्पित करूं
शब्द ब्रह्म अर्पित करूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
💐प्रेम कौतुक-405💐
💐प्रेम कौतुक-405💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
प्रद्त छन्द- वासन्ती (मापनीयुक्त वर्णिक) वर्णिक मापनी- गागागा गागाल, ललल गागागा गागा। (14 वर्ण) अंकावली- 222 221, 111 222 22. पिंगल सूत्र- मगण तगण नगण मगण गुरु गुरु।
प्रद्त छन्द- वासन्ती (मापनीयुक्त वर्णिक) वर्णिक मापनी- गागागा गागाल, ललल गागागा गागा। (14 वर्ण) अंकावली- 222 221, 111 222 22. पिंगल सूत्र- मगण तगण नगण मगण गुरु गुरु।
Neelam Sharma
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
SHAMA PARVEEN
कोरा कागज और मेरे अहसास.....
कोरा कागज और मेरे अहसास.....
Santosh Soni
দারিদ্রতা ,রঙ্গভেদ ,
দারিদ্রতা ,রঙ্গভেদ ,
DrLakshman Jha Parimal
अगर आप सही हैं तो खुद को साबित करने के लिए ताकत क्यों लगानी
अगर आप सही हैं तो खुद को साबित करने के लिए ताकत क्यों लगानी
Seema Verma
हौसले से जग जीतता रहा
हौसले से जग जीतता रहा
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारुपेण संस्थिता
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारुपेण संस्थिता
Sandeep Kumar
वक़्त के साथ
वक़्त के साथ
Dr fauzia Naseem shad
होली
होली
Dr Archana Gupta
चौथ का चांद
चौथ का चांद
Dr. Seema Varma
प्रशांत सोलंकी
प्रशांत सोलंकी
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
"आशा" की चौपाइयां
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
* रेत समंदर के...! *
* रेत समंदर के...! *
VEDANTA PATEL
"सियार"
Dr. Kishan tandon kranti
Stop getting distracted by things that have nothing to do wi
Stop getting distracted by things that have nothing to do wi
पूर्वार्थ
पैसा
पैसा
Sanjay ' शून्य'
प्यार की लौ
प्यार की लौ
Surinder blackpen
2507.पूर्णिका
2507.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
😜 बचपन की याद 😜
😜 बचपन की याद 😜
*Author प्रणय प्रभात*
आत्मघाती हमला
आत्मघाती हमला
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
दीवाली
दीवाली
Mukesh Kumar Sonkar
*ठेला (बाल कविता)*
*ठेला (बाल कविता)*
Ravi Prakash
हे राम ।
हे राम ।
Anil Mishra Prahari
Loading...