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1 Jun 2021 · 1 min read

अधूरा जीवन (नारी)

अधूरा जीवन (नारी)

उलझने सुलझें इसी कोशिश में हर बार,
उलझे ही चले जा रहे हैं जिंदगी के तार।

मैं खो गई भंवर मे किनारे की तलाश में,
ना जाने कहाँ पाऊं इससे उभरने का सार।

यूँ तो है बड़ी लुभावनी जीवन की ये नौका,
पर होती अगर मेरे भी हाथ में पतवार,

शायद मैं भी तय करती रास्ता सपनो का,
और कर भी लेती शायद उन सपनो को साकार।

दुनिया के रंगमंच में, मैं काम की बहुत हूँ,
मेरे बिना है अधूरा हर पात्र और किरदार।

काश होती मेरे भी किरदार की कीमत,
मिल जाता कभी भूले से मुझको भी पुरस्कार।

लेकिन इतनी अहम होने के बाद भी,
ना जाने क्यूँ होता रहा मेरा ही तिरस्कार।।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 751 Views
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