अधीर मन
अधीर मन
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शांत धरा ,गंभीर गगन
करता रह-रह अधीर ये मन,
खामोशी में लिपटी झीलें
कर जाती रह -रह बेचैन,
दूर क्षितिज पर जाकर मिलते,
धरा – गगन सा व्याकुल नैन।
विहग वृंद व्योम पे गाए
ढलता दिन और आती रैन।
शतदल भंवर गुंजार सुनाए
मन पाखी बन करता सैन।
उमड़ी बदरी लाए संदेश
चमके चम- चम चंचल ये बैन!
वृक्षों का मध्यम संगीत
हृदय समाकर छीने मन चैन ।
—-मनीषा सहाय सुमन