अधिवक्ता
अधिवक्ता
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अदालत की यही तो, शान है;
इनकी अलग ही , पहचान है।
पहनते ये गले में, उजली बैंड;
ये है, पुरानी बैरिस्टरी का ट्रैंड।
शरीर पर होती है, कोट काली;
करते ये, कानून की रखवाली।
कानून तो अंधा है , कोट कहे;
कोट ही इसमें, निष्पक्षता बहे।
गाऊन से ये और प्रतिष्ठा पाए,
न्यायदाता के समक्ष जो जाए।
सबूत ही तो, इसका सहारा है;
ये कुछ जीता, कभी ये हारा है।
यह नियम-कानून का ज्ञाता है,
मुवक्किल हेतु, यह विधाता है।
विद्वानों में ,सबसे ऊपर आता;
पीड़ितों के,सब कष्ट हर जाता।
इसकी अभिव्यक्ति में शक्ति है,
इसके कलम में भी, होता दम।
ये नियति को भी टाल जाता है,
काल भी , इससे ही शर्माता है।
ये बेंच में नहीं , बार में होता है;
किसी संकट में, ये नही रोता है।
बहस में यह, नहीं कभी रुकता,
तब तो कहलाता ये,’अधिवक्ता।
बुद्धि-ज्ञान में पत्थर की मील है,
तब तो कहलाते ये , ‘वकील’ हैं।
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..स्वरचित सह मौलिक
……..✍️पंकज ‘कर्ण’
………….. कटिहार।।
१९-९-२०२१