अधिपत्य
अधिपत्यमेरा कोई अधिकार नहीं
फिर भी चाहता हूँ मैं
तुम पर सम्पूर्ण अधिपत्य।
नहीं चाहता हूँ देखना
तुम्हे किसी और की
भुजाओं में क़ैद।
मन द्वेष से भर उठता है
जब तुम किसी और से
मिलते हो मुस्कुरा कर
खिलखिला कर हँसते हुए
जब किसी और के
कन्धों पर होते हो सवार
नहीं संभाल पाता हूँ
मैं अपने ही कन्धों का बोझ।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”