अधिकार और अत्याचार
*** एक ओर अधिकार दूजे ओर अत्याचार ****
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा है l
अधिकारों और अत्याचारों के मध्य,
जीवन सूना, हर हर्ष स्तब्ध!
मिले सभी को जिससे जीवन शक्ति
वह कहाँ गुम है? सब करके जब्त l
खुली हवा की महक मर गई
रूठ गई है ताजगी सारी
दुनिया यह बेरंग हो रही
लगती थी जो सबसे प्यारी
वीरानी का पहाड़ खड़ा है
कटा जहां हर वृक्ष पड़ा है l
कुएं, झीलें तालाब और सागर
सप्त नदियाँ भी हो रही हैं गुप्त
मानव के शोषण और प्रदूषण से,
हरियाली मुक्त सभी घाट हैं लुप्त l
दिनकर है हर दिन गरम – गरम,
और चंद्र हुआ है सुप्त – सुप्त l
सदियों में जो नहीं हुआ था
यह निश्चित वही आकाल पड़ा है l
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा है l
करुणामयी जीवन के नाम पर
शेष बचा है आचरण में बल
मानव हर अपराध कर रहा
नित कर रहा अतिक्रमण से छल
क्यूँ कमजोर हो गई इच्छाशक्ति,
क्यूँ अच्छी नहीं लगती प्रेम व भक्ति l
अनैतिकता कुकर्म की हद है,
हो रही दुर्दशा, मिला कर्मों का फल l
कैसे, क्या, कहाँ, कब, कौन के मध्य,
मिल रहा मौन सबको अब पल- पल l
दुविधा, लाचारी और चिंताओं के युग में,
अब किधर वो संविधान पड़ा है?
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा हैl
जन जीवन है पोषण को चिंतित
हर हृदय, मस्तिष्क प्रत्येक शरीर
संसार बना उत्पाद आधारित
न समझें निर्धन ग्राहक की पीर
हर इंसान अब चाहे बस इतना
न कमजोर पड़े विश्वास है जितना l
धरा पर मची प्राणवायु हलचल l
सब चिंतित है, कैसा होगा कल?
आफ़त में जीते – मरते भी,
आसमान सिर पर उठा लेंगे l
ज्यादा उम्मीद, थोड़ा सा वक्त
साधन पर्याप्त जुटा लेंगे l
रुपये का कद बढ़ा या घटा?
सेवा में हर समुदाय है बटा l
जन जन की इस अद्भुत क्षमता पर भी,
झूठी प्रतिस्पर्धा का व्यापार कड़ा है l
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा हैl
खूब खेल है, सब हार्टफेल है l
जन कोशिशें फिर भी नहीं होती हैं पस्त
लोकतांत्रिक व्यवस्था में,
प्रतिनिधियों के मुँह ऑक्सीजन दस्त l
संकट और संशय की स्थिति,
क्या पता झूठ? कब बन जाए सच!
स्वास्थ्य सुविधा में जुड़े विशेषज्ञों का,
देश दुनिया को यह पैगाम जबर्दस्त l
हम जल्द रामबाण वैक्सीन बना लेंगे,
हम जल्द रामबाण औषधि बना लेंगे,
अनुसंधान में नित विज्ञान लगा है l
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा हैl
ना खड़े हो सके राष्ट्र किसी के
दुखी, भयभीत हर जन – गण- मन
मानवाधिकार का शत्रु हुआ मानव
सर्वशक्ति चाह में बन गया है दानव
मर्यादाओं की सीमा को भूलकर
प्रकृति को दुत्कार लड़ा है l
वर्तमान जगत का यही कटु सत्य है
मनुष्य तोड़ चुका स्वयं का दर्पण
परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण सृष्टि में,
दिख रहा घोर यह परिवर्तन l
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा हैl
विकलांग मानसिकता से ग्रसित होकर,
मानव ने मौत का जाल बुना है l
जीवन की गुणवत्ता कम हो,
तभी मौत का कारोबार चुना है l
यह देख मेरे मन में प्रश्न है
क्या विवेक से ही यह अज्ञान जगा है?
मानव और कुदरत की जंग में,
किसने चुपके से किसे ठगा है?
एक ओर अधिकार खड़ा है,
दूजे ओर अत्याचार बड़ा हैl
रचना – राहुल प्रसाद
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