अधखिली कली
भटका हुआ है गली
खुद की गली से
चाहता है खुशबू
अधखिली कली से
सहम जाती है
बढ़ते हाँथ देखकर
कहीं कुचला न जाऊँ ?
वक्त से पहले
तरासे जाते हैं पत्थर
इंसान बनाने के लिए
फिर लगे हैं लोग क्यों?
शैतान बनाने के लिए
इंसान -शैतान कौन?
फर्क नहीं समझती
बस इतना चाहती है
खिलने दो मुझे भी
महकने दो मुझे भी
हवाओं में फिजाओं में
बिखरने दो मुझे भी
श्री एस•एन•बी• साहब