अदा सा कुछ
इस दिल में हे पुकार सा कुछ
बस प्यार की गुहार सा कुछ
बहते हे ज़रण पर्बतों से निकल
ज़ज़्बा हे उठती जुवार सा कुछ
मचलाती बलखाती बेहति नदिया
वेसे दिलभी हे जल तरंग सा कुछ
गिरता है नैनो से “अश्क” जब जमी पर
मेंहसूस होता है ‘महकती’ धरा सा कुछ
साथ तूफा का रुख भी हो “नजारा” भी हो
तेरी ज़ुल्फो का लेहराना लगे अदा सा कुछ
@अंकुर…..