अदावत में मेरे हमदम तड़पता छोड़ जाते हो
चले जाते हो मुड़कर तुम, तड़पता छोड़ देते हो।
तम्मनाओं को मेरे तुम, तड़पता छोड़ जाते हो।
अधूरे ख़्वाब हैं मेरे, ज़मीं पे ही सरकते हैं।
ख़्वाबों में भी तुम हमको, तड़पता छोड़ जाते हो।
ये है संगीन-सा कुछ तो मेरा दिल भी समझता है।
अदावत में मेरे हमदम, तड़पता छोड़ जाते हो।
मेरे ग़म में न हो शामिल, तुम्हें आज़ाद करता हूँ।
गिरे जब बिजलियाँ मुझपे, तड़पता छोड़ जाते हो।
—-कुमार अविनाश केसर
मुजफ्फरपुर, बिहार