अदालत की निष्पक्षता
आख़िर क्या करें मज़बूरी है!
हमें आती नहीं जी हजूरी है!!
ऐलान-ए-हक़ तो करेगी ही
जब फ़ितरत अपनी मंसूरी है!!
आकाश से टपकी है क्या वह
कि गलत कभी हो ही न सके!
अदालत की निष्पक्षता पर भी
अब सवाल उठाना ज़रूरी है!!
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