** अदालत-ए-इश्क **
मुवक्किल थे हम उनके
अदालत-ए-इश्क में
पैरवी कुछ इस तरह की
हम जीती हुई बाजी हारे ।।
?मधुप बैरागी
प्राणों का नहीं मोह मुझे
न मृत्यु का है भी
मृत्यु अंकशायिनी बनी
तभी तो है जीवन अपराधी ।।
?मधुप बैरागी