अदभुत रहस्य 【नन्हां शिवलिंग】
नन्हां शिवलिंग
यह बात वर्ष 2002-2003 के मध्य की है, जब मैं अपने ऑफिस में एक कमरे में अकेली बैठी हुई थी, तो दोपहर के वक्त , एक साधु बाबा, जो काले रंग के कपड़े पहने हुए था तथा काले रंग की ही एक झोली काँधे पर टांगे हुए था, उसकी जटाऐं बहुत लंबी लंबी थी, कुछ जटाओं का जूड़ा बना रखा था, उसके हाथों में चिमटा और त्रिशूल था , बाजु व गले में और सिर पर जूड़े में रुद्राक्ष की मालाएं पहने हुए था, चेहरे पर सफेद रंग की भभूत लगा रखी थी और एक लाल रंग का तिलक लगाया हुआ था, वो साधु मेरे कमरे में आया, मैं उसे देख कर डर गई और फिर दुबारा उसकी तरफ देखने की हिम्मत नहीं कर पाई।
वह दरवाजे पर ही खड़े होकर बोला बेटा डरो मत मैं तुम्हें सिर्फ यह बताने आया हूँ कि कुछ समय की बात है, तुम घबराना मत, तुम बहुत ऊपर ऊँचाइयों तक जाओगी, तुम्हारे जीवन में कभी भी रुपयों पैसों की कमी नहीं रहेगी, जब तुम्हें जरूरत होगी तब तुम्हें मिल जाएगा। तुम्हारे दोनों बच्चे कामयाब होंगे और तुम्हारा दुनिया में नाम होगा। बस तुम मेरी एक बात मान लेना, जो मैं यह तुम्हें एक तोहफा देकर जा रहा हूँ, इसे हमेशा अपने पास, अपने साथ रखना और इतना कहकर, वह तोहफा उसने मेरी मेज पर रख दिया और आशीर्वाद के रूप में हाथ उठाकर मुझे आशीर्वाद दिया (यह सब मे चोरी-चोरी चुपके से देख व सुन रही थी) और वह इतना कह कमरे से बाहर चला गया।
जब वह कमरे से बाहर चला गया, तो मैंने देखा कि मेरी मेज पर एक छोटा सा (मटर के दाने के बराबर) हरे रंग का शिवलिंग रखा हुआ है, मैंने तुरंत ही उसको हाथ में लिया और देखा वह शिवलिंग अत्यंत ही खूबसूरत था। इससे पहले मैंने ऐसा शिवलिंग कभी नहीं देखा था । (और मुझे लगता है अब तक आपने भी नहीं देखा होगा) मैं तुरंत ही कमरे से बाहर आई और देखा कि वो बाबा किधर गया। लेकिन पता ही नहीं लगा कि वह बाबा किधर गायब हो गया कहां गया और कहां से आया था।
मैंने ऑफिस के और लोगों से पूछा तो उन्होंने कहा हमने तो किसी को नहीं देखा। जब मैंने उन्हें सारी बात बताई तो एक मेडम बोली, होगा कोई पर तू ऐसे बाबाओं के चक्कर मे मत आ जाना। उसके बाद घर आकर अपनी मम्मी को बात बताई तो मम्मी ने कहा, कुछ लेके तो नहीं गया, देकर ही गया है , वो भी एक शिवलिंग, तो रखले अपने पास उसकी बात मानकर, क्या पता भगवान ही उस बाबा के रूपमे आये हों। तब मम्मी ने मुझे अपना भी एक किस्सा सुनाया। बोली मेरे साथ भी एक बार ऐसा हुआ था तुम्हारे भाई के आने से पहले। मैंने भी एक बाबा को सफेद कपड़ों में देखा जो उसने बताया था सब वैसे ही हुआ। किन्तु फिर वो कभी कहीं नज़र नहीं आया। इसलिए ज्यादा मत सोच उनकी बात मान ले।
मैंने वो शिवलिंग अपने पास बड़े प्यार से संभाल कर रख लिया और तब से आज तक मैंने उस बाबा को कभी नहीं देखा । अब तक 17 वर्ष बीत चुके हैं, जीवन मे काफी उतार चढ़ाव आये, अनगिनत तूफान आये, पर अंत मे मुझे सदा सफलता ही मिली, बल्कि पूरी दुनिया मे मेरी एक पहचान बनी, मेरे दोनों बच्चे ज्ञानवान हो अपने-अपने क्षेत्र में सफल हुये, कभी धन व ऐश्वर्य की कमी नहीं रही, सब वही हुआ जो उस बाबा ने कहा था।
दोस्तो कहते हैं कि भगवान को सभी ढूढ़ते हैं, सभी भक्त की प्रबल इच्छा रहती है कि उसे उसका भगवान मिल जाये, उसी तरह मेरी भी प्रबल इच्छा थी कि मैं भगवान से मिलूँ, बचपन से ही भगवान की भक्त थी , 12 वर्ष की आयु से ही व्रत व पूजा करना आरम्भ कर दिया था। सदा भगवान से भगवान को ही मांगती थी आज भी यही आरज़ू है और हमेशा रहेगी। भगवान को पाने के लिए भक्त अपना पूरा पूरा जीवन लगा देते हैं किंतु भगवान को नहीं पा पाते, भगवान के दर्शन तभी होते हैं जब भगवान की रहमत होती है, आर्थात जब उसकी भक्त पर कृपा दृष्टि होती है। भगवान अपने भक्त को पल भर में हीं खोज लेता है और जब भक्त भगवान से मिलता है तो उस मिलन का कोई न कोई माध्यम बनता है।
मेरा माध्यम बना राजयोग ।
यह राजयोग वो ज्ञान है जो प्रजापिता ब्रह्मा के माध्यम से परमपिता परमात्मा शिवबाबा द्वारा दिया गया। ऎसा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की साध्वियाँ व भाई कहते हैं। जिसमे कितना और क्या सत्य है ..? यह तो सिर्फ परमपिता परमात्मा भोले बाबा सदाशिव ही जानें।
मैंने यह राजयोग का 7 दिन का कोर्स किया , इसके माध्यम से मुझे जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ मैंने उसे सच्चे हृदय से धारण किया। उस बीच हृदय में अनगिनत प्रश्न उठते रहे। आठवें दिन मुझे बताया गया कि आपके दिल में जो भी प्रश्न हैं वो आप शिव बाबा से पत्र में लिखकर पूछ सकते हो।आपको अपने प्रश्नों के उत्तर प्रातः मुरली के माध्यम से मिल जाएगा। उनके द्वारा मुरली को परमपिता परमात्मा के वचन माना गया है।
मन बहुत ही प्रफुल्लित था, आठवें दिन शाम को मैंने शिवबाबा को पत्र लिखा, मन मे सवाल तो बहुत थे पर मैंने सिर्फ यही पूछा…कि ‘आप हमेशा कहते हो कि मैं मिलने आऊँगा, में कितने वर्षों से आपको बुला रही हूँ पर आप मुखे मिलने हैं नहीं आते, मुझे नहीं पता मुझें आपसे मिलना है , आप मुझसे मिलों प्रभु मैं आपसे मिलना चाहती हूँ ,सम्पूर्ण रूप से आपको समर्पित हूँ, आओ प्रभु मुझे अपना दर्शन दो।
इतना लिखकर पत्र शिव बाबा को समर्पित कर दिया।
दूसरे दिन जब मुरली सुनी तो सुनकर मैं स्तब्ध रह गई ,उसमे मेरे उस सवाल का तो उत्तर था ही जो मैंने पूछा था तथा उसमें मुझे उन सवालों का भी उत्तर मिल गया , जो मेरे दिल मे चल रहे थे और जवाब सुनकर मैं फूट-फूटकर लगभग आधा पौना घंटे रोती रही, रोते रोते मुझे किसी की आवाज़ कानों में सुनाई पड़ी । कोई कह रहा था .. रो मत मेरी प्यारी बच्ची, तू तो मेरी प्यारी बच्ची शिवप्रिया है, क्यों रोती है..? तू कहती है, मैं आया नहीं, तू मुझसे मिलना चाह रही थी, मैं तो तुझ से कई बार मिल चुका हूँ और तुझे तोहफा भी देकर गया था । ये शिव बाबा की आवाज़ थी।
जब शिवबाबा ने एहसास कराया तब मुझे अपने जीवन की वह सभी घटनाएं याद आ गई और एक फिल्म की तरह वह सब मेरी नजरों के सामने से गुजरने लगा । वह शिवलिंग भी याद आया, जिसका मैंने ऊपर जिक्र किया है और वह शिवलिंग आज भी मेरे पास, मेरे साथ, हमेशा मेरे पर्स में रहता है । अंत मे यही कहूँगी कि….
कौन कहता है….?
कि भगवान आते नहीं….!
तुम उन्हें …
सच्चे हृदय से बुलाते नही….!
भगवान तो…!
भाव के भूखे होते हैं….
धन-दौलत-प्रसाद के भूखे नहीं….!
© डॉ० प्रतिभा ‘माही”