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2 Oct 2020 · 1 min read

अत्याचारी दौर

निकल अकेली ना घर से बेटी,
साया बाहर शैतानों का।
जहाँ फूल झड़ते बातों में
डेरा वहीं हैवानों का।।

आज दरिंदे औरंगजेब से
बदतर सोचें रखते हैं ।
अपनी हवस बुझाने खातिर,
कुटिल इरादे रखते हैं।।

कुत्ते गली-गली घूमते
शेरानी नकाबों में।
भेड़ियों की तादात बढ़ रही,
जंगल राज हुक्मरानों में।।

आँधी अत्याचार कहाँ
अकेले सह पाएगी ।
नोंच दरिंदे खा जाएँगे
चीख तलक न पाएगी।।

धधक-धधक जब जली चिता तो,
मेरा दिल भी धधक उठा।
बेटी मनीषा आदित्य राज में,
सारा यू पी दहक उठा।

बात मात्र न दलिताई की
बेटी सबकी आन है ।
आज हमारी व्यथित हुई
क्या कल किसकी पहचान है।

महज लूट हर तरफ मची
हर दिशा हुई लाचार है।
रक्षक भक्षक बने हुए हैं,
‘मयंक’ तुम्हें धिक्कार है।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 415 Views
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