Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jul 2022 · 4 min read

प्रेम कथा

सुबह के 6 बजे थे और पूरा परिवार जमीन पर पालथी मारे बैठा था, एक मृत शरीर को घेरे हुए, जिसे अभी – अभी चारपाई से उतार कर नीचे रखा गया था…।
वे लोग बार – बार रोते हुए उस शरीर को छू रहे थे, उसके गले लग रहे थे, जबकि जीवित रहते शायद ही कभी लगाया हो।
उन लोगों में एक लड़की भी थी, जो ठीक उस निर्जीव शरीर के सिरहाने बैठी थी। वो लड़की अपनी लाल, आंसुओं से भरी आंखों से एकटक उसके चेहरे को देख रही थी।
उसने देखा झुर्रियों से भरा, दिव्य, सफेद, शांत चेहरा, उसने आंखों में भरे आंसू गिराने के लिए पलकें बंद कर लीं, और फिर खोलकर उसी चेहरे को देखा, अबकी वहां उम्मीदों से भरी एक युवा और समर्पित मां का चेहरा दिखा, अगले ही पल एक बच्ची का, जो बहुत ज़िद्दी थी। लड़की ने बड़ा अजीब सा मुंह बनाया और रो पड़ी, रोती रही जितना लगातार रोया जा सकता है।
फिर शांत होकर उस शरीर को देखने लगी और खुद से कहा कि, ये वो नहीं है जो कुछ देर पहले जीवित थी। अगर वो होती तो किसी को रोने नहीं देती, किसी को परेशान नहीं होने देती। क्योंकि वो अपने अलावा और किसी के आंसू नहीं बर्दाश्त कर सकती थी, कल्पना में भी नहीं।
और अपने आंसू, अपना दुख भी कभी कहां दिखाया था उसने किसी को। लेकिन लड़की फिर भी समझ जाती थी उसकी लाल आंखो और मौन से, इसलिए रात चढ़ते ही उसकी तकिए के पास मुकेश के गाने बजाकर रख देती थी और चली जाती थी।
एकाध घंटे बाद वो लड़की को बुलाती और मुस्कुराते हुए फोन ले जाने को कहती।
बस इतने से ही बिना कुछ बोले दोनों एक दूसरे को समझते थे, एक दुख को दूसरा फिक्र को।
लड़की फिर रो पड़ी और एक बार फिर से इस सफेद मृत चेहरे को देखा।
जैसे पन्ने पलटने से एल्बम की तस्वीरें बदलती रहतीं हैं, वैसे ही उसके आंसू के गिरने के बाद दूसरे उमड़े आंसू में एक नई तस्वीर उभर रही थी।
उसे याद आए पिछले कुछ वर्ष, जब वो लड़की के गाल खींचकर उसे चिढ़ाते हुए कहती थी कि अब शादी करवानी पड़ेगी तुम्हारी, आजकल जादा लाड़ उमड़ता है तुम्हारा…।
लड़की रो पड़ी, इतनी क्या जल्दी थी जाने की थोड़ा समय तो दिया होता…!
फिर सांस लेने के लिए रुकी तो एक नई तस्वीर आ गई। जब वो अपार पीड़ा और अपमान छुपाए हुए कांपती आवाज़ में कहती थी कि भगवान मुझे जल्दी बुला लेना। और कुछ तो कभी मुंह मांगा नहीं दिया तुमने, कम से कम आखरी प्रार्थना सुन लो अब उठा लो मुझे। और लड़की सिर्फ उसके हाथ को थामे बैठी रहती थी, जानती थी कि एकतरफा प्यार का कोई इलाज नहीं। उसका प्यार भी अब एकतरफा हो गया है, उसके प्यार की जरूरत ही नहीं अब किसी को, उन्हें तो बिल्कुल भी नहीं जिससे उसे बेहद प्यार था, जिससे थोड़ी सी फिक्र थोड़ा सा सम्मान और थोड़ा से प्यार से ज्यादा और कुछ नहीं चाहा था उसने।
और जिन्हे परवाह थी उसकी, उनसे उसे कभी कुछ चाहिए ही नहीं था, प्यार भी नहीं।
लड़की फिर रोई सिसक – सिसक कर रोई। अपनी बेबसी पर, उसकी नियति पर।
लड़की ने रुककर उसकी बंद आंखो को देखा, फिर से एक, अंतिम तस्वीर उसकी आंखों में उभर आई।
कोई विशेष त्योहार नुमा दिन था,
वो अपनी किसी सामान्य सी बात के उत्तर में अपने सर्वाधिक प्रिय से अत्यंत कठोर और कटु प्रत्युत्तर को सुनकर, निराशा और आंसुओं से भरी आंखों को छुपाते हुए कमरे में चली गई थी, और उसके पीछे से लड़की भी।
लड़की ने उसे सफेद साड़ी के कोने से आंसू पोछते हुए देखा, और चिढ़कर गुस्से से बोली, “अच्छा लग रहा है न, और करो लड़का लड़का। बहुत प्यारे हैं न तुमको तुम्हारे बेटे, हम लोग कितना भी प्यार करें कुछ भी कहें तुम्हें फर्क ही कहां पड़ता है, कितनी बार कहा है चली जाओ यहां से, मत रहो यहां, किसी को तुम्हारी परवाह नहीं है, तुम्हारी पेंशन से तो तुम मजे से जी सकती हो अपनी जिंदगी, लेकिन नहीं। तुम्हें तो मजा आता है इन्हें बनाकर खिलाने में। इनकी बातें सुनने में। बेटे हैं तभी तो सुनाते हैं, हैं न ! सुनो खूब सुनो, अब रो क्यों रही हो ? सुनो ऐसे ही सुनते – सुनते मर जाना लेकिन इनकी परवाह करना मत छोड़ना।” इतना बोलते बोलते रो पड़ी थी लड़की। गुस्से से पैर पटकते हुए चली गई थी वहां से। एकांत में जाकर बहुत रोई, लड़की उसके निस्वार्थ प्रेम को और अपमानित होते हुए नहीं देख सकती थी उसके हाथ प्रार्थना की मुद्रा में बंध गए थे उसने रोते हुए आसमान की ओर देखा और कहा कि, भगवान इन्हें उठा लो अब, प्लीज़ उठा लो इन्हें।
तुमसे कुछ न मांगने वाली ये बुढ़िया आत्मसम्मान के साथ मृत्यु तो डिजर्व करती है न!
लड़की कसके फफक कर रो पड़ी थी। वो बुढ़िया मर चुकी थी।
भगवान ने उसकी आखरी इच्छा सुन ली थी।
लड़की ने दुख और संतोष से भरी एक लंबी सांस खींचते हुए उसके चेहरे को देखा और…फिर रोने लगी…..।

ऐसे ही कोई बुढ़िया जिंदगी के आखरी पड़ाव को जीते हुए किसी लड़की को प्रेम सिखा जाती है, निस्वार्थ और वास्तविक प्रेम। और वो लड़की, फिर जीवन भर प्रेम करती है। जैसे, प्रेम को तरसते हुए मरी औरत मिट्टी बनकर सृष्टि के कण कण में समा गई है, और लड़की अबकी उसे अतृप्त नहीं जाने देगी।
इसलिए लड़की अपनी क्षमताओं से परे होकर प्रेम करना चाहती है, और प्रेम को जीते हुए प्रेम होकर ही मर जाना चाहती है, उस औरत की तरह।
– शिवा अवस्थी

6 Likes · 4 Comments · 1124 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दौड़ी जाती जिंदगी,
दौड़ी जाती जिंदगी,
sushil sarna
इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति को उसके अलावा कोई भी नहीं हरा
इस दुनिया में किसी भी व्यक्ति को उसके अलावा कोई भी नहीं हरा
Devesh Bharadwaj
4752.*पूर्णिका*
4752.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
प्रकाश एवं तिमिर
प्रकाश एवं तिमिर
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
అతి బలవంత హనుమంత
అతి బలవంత హనుమంత
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
मुझसे जो भी होता है वो मैं करता हूॅं!
मुझसे जो भी होता है वो मैं करता हूॅं!
Ajit Kumar "Karn"
मेरी फितरत तो देख
मेरी फितरत तो देख
VINOD CHAUHAN
रामजी कर देना उपकार
रामजी कर देना उपकार
Seema gupta,Alwar
कलयुग की छाया में,
कलयुग की छाया में,
Niharika Verma
*आहा! आलू बड़े मजेदार*
*आहा! आलू बड़े मजेदार*
Dushyant Kumar
दोस्ती की हद
दोस्ती की हद
मधुसूदन गौतम
We Mature With
We Mature With
पूर्वार्थ
क्या कहें
क्या कहें
Dr fauzia Naseem shad
"निशानी"
Dr. Kishan tandon kranti
सीमजी प्रोडक्शंस की फिल्म ‘राजा सलहेस’ मैथिली सिनेमा की दूसरी सबसे सफल फिल्मों में से एक मानी जा रही है.
सीमजी प्रोडक्शंस की फिल्म ‘राजा सलहेस’ मैथिली सिनेमा की दूसरी सबसे सफल फिल्मों में से एक मानी जा रही है.
श्रीहर्ष आचार्य
#तेवरी (हिंदी ग़ज़ल)
#तेवरी (हिंदी ग़ज़ल)
*प्रणय*
वेतन की चाहत लिए एक श्रमिक।
वेतन की चाहत लिए एक श्रमिक।
Rj Anand Prajapati
अब चिंतित मन से  उबरना सीखिए।
अब चिंतित मन से उबरना सीखिए।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
स्वयंभू
स्वयंभू
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
पितृ स्वरूपा,हे विधाता..!
मनोज कर्ण
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
The_dk_poetry
मित्रता क्या है?
मित्रता क्या है?
Vandna Thakur
दे ऐसी स्वर हमें मैया
दे ऐसी स्वर हमें मैया
Basant Bhagawan Roy
*चलते रहे जो थाम, मर्यादा-ध्वजा अविराम हैं (मुक्तक)*
*चलते रहे जो थाम, मर्यादा-ध्वजा अविराम हैं (मुक्तक)*
Ravi Prakash
स्नेह से
स्नेह से
surenderpal vaidya
जलियांवाला बाग काण्ड शहीदों को श्रद्धांजलि
जलियांवाला बाग काण्ड शहीदों को श्रद्धांजलि
Mohan Pandey
नज़रें!
नज़रें!
कविता झा ‘गीत’
अंदाज़-ऐ बयां
अंदाज़-ऐ बयां
अखिलेश 'अखिल'
पूर्णिमा की चाँदनी.....
पूर्णिमा की चाँदनी.....
Awadhesh Kumar Singh
सोच
सोच
Neeraj Agarwal
Loading...