अतुल्य भारत
अतुल्य भारत
गर्व मुझे अपनी माटी पर, मस्तक पर इसे लगाता हूँ
भारत माँ को शीश झुका, इसकी महिमा गाता हूँ ।
अदम्य साहस जिसकी पहचान, ऐसा भारत आज दिखाता हूँ
ध्वज तिरंगा शान है जिसकी, उसका गुणगान सुनाता हूँ ।
धर्म-जात में भेद नही यहाँ, ऐसा देश है ये अपना
मिलजुल कर हम सब यहाँ रहते, नहीं है कोई यह सपना ।
लोकतंत्र का बना प्रहरी, सबको पाठ पढ़ाता है
गणतंत्र पहचान सुनहरी, सीख यही सिखलाता है ।
गर्व मुझे अपनी माटी पर, मस्तक पर इसे लगाता हूँ
भारत माँ को शीश झुका, इसकी महिमा गाता हूँ ।।
वैदिक युग में इस धरती पर जब, दुख के बादल छाए
पीड़ा हरने मानव की, श्रीराम यहाँ पर आए
प्रेम रस बरसाने को, माधव नें यहाँ अवतार लिया
कर्म से बढ़कर नहीं कोई दूजा, गीता का यह सार दिया ।
गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान से, अहिंसा का पाठ पढ़ाया है
महावीर ने संपूर्ण धरा पर, ज्ञान खूब फैलाया है ।
ऋषि मुनियों की त्याग भावना, सबको आज बताता हूँ
भारत माँ को शीश झुका, इसकी महिमा गाता हूँ ।।
जनपद, महाजनपद बन बैठे, सीमा का विस्तार हुआ
विशाल राष्ट्र की हुई स्थापना, ख्याति का प्रसार हुआ ।
आर्यभट्ट की शून्य खोज ने, जोड़-भाग सब सिखलाया
वराह मिहिर ने विश्व में सबको, खगोलशास्त्र है बतलाया ।
धन-धान्य की कमी रही ना, खुशियों का अंबर छाया
सोने की चिड़िया बनकर, विश्व पताका फहराया ।
ललचाया गौरी, गजनी भी, उनकी भूख सुनाता हूँ
भारत माँ को शीश झुका, इसकी महिमा गाता हूँ ।।
नारी नहीं भारत में अबला, रानी की अमर कहानी थी
खड़ग हाथ में ले घोड़े पर, खूब लड़ी मर्दानी थी ।
अंग्रेजों ने धर्म-जात पर, आपस में हमकों लड़वाया
सत्य, अहिंसा लेकर बापू, उनसे जाकर टकराया ।
इंकलाब कह फाँसी चढ़ गया, बिल्कुल भी नहीं घबराया
फौलाद सा सीना लेकर जन्मा, भगत सिंह वह कहलाया ।
वीर सावरकर, आजाद और बोस की, गाथा तुम्हें सुनाता हूं
भारत माँ को शीश झुका, इसकी महिमा गाता हूँ ।।
झाँक ना पाए दुश्मन यहाँ, इतना ताकतवर है मेरा देश
धूल चटा दी अटल ने उनको, पोखरण में दे संदेश ।
शिक्षा, साहित्य, अर्थजगत, विज्ञान में, ना कोई सानी है
आयुर्वेद और योग की महत्ता, संपूर्ण विश्व ने मानी है ।
स्टैचू ऑफ यूनिटी से तुमको, भारत एक दिखाता हूँ
देश की सरहद पर बैठे, जांबाज से मैं मिलवाता हूँ ।
जल-थल-नभ में ताकतवर, हिंदुस्तान की जय-जय गाता हूँ
भारत माँ को शीश झुका, इसकी महिमा गाता हूँ ।।