अतुल्य भारत पर कविता
परम पुनीत गणतंत्र हमारा, आओ मिलकर जय-गान करें अतुल्य भारत की जय गाथा संग संस्कृतिओं का बखान करें
सोने की चिड़िया फिर से बने यश चहुदिश फैले भारत का न जाति-धर्म का बंधन हो बस प्रसार हो बुद्ध विरासत का –
न निर्भया हो न गोधरा हो ..बस अमन चैन का वास रहे सिंचित हों सब अनुराग-वृष्टि से खुशियाँ सबके ही पास रहे
न जवान कभी असहाय लगे न ही कृषक कभी मजबूर बने बचपन हो आनंद का सागर् न ही बच्चा कोई मजदूर बने
न नेताओं में सत्ता की लालच न ही भ्रष्टाचार बेकाबू हो संविधान पन्नों से निकल कर सब जन मानस पर लागू हो