अतीत
लहराती हुई पीली सरसों ऐसे मस्ती कर रही है जैसे हीरा जब छोटी थी मस्तियाँ किया करती थी । साथियो के साथ कुचाले भरते हुए वो दिन कितने मस्ताने थे । पर सूखा पड़ जाने के कारण फसल नष्ट हो गई और ठूँठ मात्र रह गये । वक्त भी कैसी करवटें लेता है सबकुछ छोड़ यापन हेतु शहर आना पड़ा । मेहनत मजदूरी ही अपना सहारा थे ।
ऐसे ही एक शाम हीरा बैठी सोच रही थी तो पुरानी स्मृतियाँ यादों के गलियारों से जीवंत होने लगी । गांव में जमीदारों के अत्याचार , दिन भर श्रम करना , शाम होते ही अपने टूटे से घर में वापस आना । यहीं उसके लिए दिन भर की थकान मिटा आनंद की अनुभूति देता था । किसी स्वर्ग से कम नहीं था । कैसे उसके माँ बाप के साथ बड़े भाई को मौत के घाट उतार दिया था । रोती रही थी सिसक सिसक कर अपने भाई के शीश को हाथ में लेकर ।
रूह सी कांप उठती है जब अतीत उसके स्मृतियों में उभर कर रेखाचित्र खींचता । बचपन की सुकुमार यादें जो जुड़ी थी । हरे भरे खेत जीवन का आधार थे ।पीली सरसों अधरो की मुस्कान थी । छोटा सा घर किसी फाइव स्टार से कम न था ।अब केवल याद करने को बस अतीत था । केवल अतीत ।