अतीत पिघल गया
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हर मृत्यु पर अतीत पिघल जाता है.
पूरा अस्पृश्य रूप में बदल जाता है.
जंगलों की भांति बेतरतीब ढ़ल जाता है.
आदि और अंत स्वयं में गल जाता है.
अच्छों की अच्छाईयां और बुरों की बुराइयाँ
हाथ लगते हैं बदलने.
अपनी हथेलियों में लिए अपना हाथ
यहाँ वहाँ टहलने.
कहे वह-
कोई पूछे उससे उसका अतीत.
उसके पराक्रम,शौर्य का संगीत.
उसका भी था महिमामय पुरुषार्थ.
कोई न पूछे उसका जला-भुना स्वार्थ.
महान आश्चर्यों में एक हमेशा है रहा अतीत.
जितनी परतों में दबे उतनी गरिमायुक्त प्रतीत.
आज एक वर्तमान अतीत में पिघल गया.
मेरे अहम् को क्या सच में निगल गया.
लिप्सित संघर्ष साम,दाम,दंड,भेद के साथ.
गौरव कह-कह गर्व रहेगा चढ़ा मेरे माथ.
मृत्यु,
सारा अतीत आज वर्तमान बनकर आ खड़ा हुआ.
अपनी कहानी दुहराकर पिघल जाने को अड़ा हुआ.
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