*पुराने जमाने में सर्राफे की दुकान पर “परिवर्तन तालिका” नामक छोटी सी किताब
पुराने जमाने में सर्राफे की दुकान पर “परिवर्तन तालिका” नामक छोटी सी किताब हुआ करती थी
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हमारे बचपन अर्थात 1970 के आसपास तक हमारी सर्राफे की दुकान पर छपी हुई छोटी सी किताब रखी रहती थी। इसे “परिवर्तन तालिका” कहते थे तथा इसमें ग्राम से तोले में वजन का परिवर्तन लिखा रहता था। तराजू पर जो तोला जाता था ,वह ग्रामों में चलता था लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहक किलो और ग्राम से अनभिज्ञ थे । अतः यह पूछा करते थे कि अमुक ग्राम वजन के कितने तोले हो गए ? परिवर्तन तालिका से ग्रामों का वजन तोले में उन्हें बताया जाता था। पुराने तोले के वजन के हिसाब से कहावतें भी बन गईं। पल में माशा पल में रत्ती ,यह कहावत उस दौर की थी जब एक तोले में बारह माशा और एक माशा में आठ रत्ती हुआ करती थी । व्यक्ति के भीतर बदलाव की स्थिति को माशा और रत्ती के माध्यम से कहावत में व्यक्त किया जाता था।
एक तोले में वास्तव में तो 11.66 ग्राम होते हैं। पुराने जमाने में इसी के हिसाब से तोले को ग्रामों में परिवर्तित करके बताया जाता था, लेकिन अब व्यवहार में एक तोले का अर्थ 10 ग्राम से लगाया जाने लगा है।
तोले को अनेक बार ग्राहकों से बातचीत में भर भी कहा जाता था अर्थात अगर कोई वस्तु आठ तोले की है तो उसे आठ भर की कह दिया जाता था । तोला और भर एक प्रकार से पर्यायवाची शब्द थे। अंग्रेजों के जमाने में जो एक रुपये का चाँदी का सिक्का चला करता था , वह पुरानी तोल का पूरा एक तोला अर्थात 11.66 ग्राम होता था।
इसी तरह विक्रम संवत पर आधारित हिंदी महीनों के हिसाब भी अभी तक खूब चले। ग्रामीण क्षेत्र की जनता यद्यपि अशिक्षित होती है लेकिन वह परंपरा के अनुसार हिंदी महीनों के ही नाम जानती है । उसे क्वार कार्तिक अगहन पूस समझ में आते हैं , वह अक्टूबर-नवंबर दिसंबर नहीं समझती । पूर्णमासी और अमावस्या इन गाँव वालों को खूब अच्छी तरह समझ में आते थे और अभी भी आते हैं । आधुनिक शिक्षा जिन नई पीढ़ी के लोगों ने प्राप्त कर ली है ,वह अब पुराने हिंदी के महीनों को भूल गए हैं। उन्हें इस बात की खबर नहीं है कि कब कार्तिक शुरू होगा कब कार्तिक की अमावस्या आती है ? दीपावली भी केवल नवंबर की तारीख होकर रह गई है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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