अतीत का वह स्वर्णिम दौर — गजल/ गीतिका
साहित्य समाज का दर्पण, हुआ करता था।
लेखक कवियों का समर्पण ,पूरा हुआ करता था।
कुछ तो परिवर्तन आया है ,मानवीय विचारों में।
अतीत में हर मानव मानवता की, दुआ दिया करता था।।
कहां कमी थी ,सर्जनशीलता के चिंतन पर चलने वालों की।
समाज में आ जाए क्रांतियां ,वही लिख दिया करता था।।
कितनी ही जटिल हो समस्याएं खुद की अपनी अपनी।
भूल उन्हें, चिंताएं दूसरों की, सुलझा दिया करता था।।
रहा कहां वश अब किसी का, अपने तन मन पर।
तब जन-जन समाज को, परिवार मान लिया करता था।।
अतीत का वह स्वर्णिम दौर, एक बार फिर लौट आए।
चाहत अनुनय की बस यही, दुआएं सबसे किया करता हूं।
राजेश व्यास अनुनय