अतीत का पन्ना पलटकर देखने से क्या होगा.. (ग़ज़ल)
अतीत का पन्ना पलटकर देखने से क्या होगा,
जो टूट जाए दिल का मंज़र, देखने से क्या होगा।
ये दर्द, ये ग़म, और ये रिश्ते बिखर चुके हैं,
सपनों की दुनिया को सजाकर देखने से क्या होगा।
वो रास्ते जो छोड़ दिए थे सदा के लिए,
ख़ुद को वहीं वापस लाकर देखने से क्या होगा।
हवा के रुख़ से बदलते हैं अक्सर मंज़र,
इस धूल के तूफ़ाँ को थमकर देखने से क्या होगा।
ख़ुदा के फैसलों में है मसर्रत छुपी हुई,
तक़दीर को दुबारा पढ़कर देखने से क्या होगा।
© पियुष राज
Dt – 30/12/2024