अति मंद मंद , शीतल बयार!
अति मंद मंद ,
शीतल बयार।
चलती मन को ,
पुलकित करती।
हर्षित करती,
कुछ गढ़ने को।
कुछ लिखने को,
प्रेरित करती।
अपने भीनी,
भीनी सुगंध से।
अंतर्मन को,
संचित करती।
अपने दिव्य,
अनुभवों से।
प्रकाशित ,
‘दीप’ को करती।
-जारी
-©कुल’दीप’ मिश्रा