अतिशय माया के चक्कर में
अतिशय माया के चक्कर में,
व्यर्थ कर्म में सब डट गए।
बातों के ही जमा खर्च में,
जीवन के पन्ने पलट गए।
सोच समझ कर ब्रह्मा जी ने,
मानव रचना साज सजाया।
ज्ञान बुद्धि का दीप जलाकर,
श्रेष्ठ बुद्धि का मनुज बनाया।
भेजा उसको इस वसुधा पर,
जाकर जग को खूब सजाओ।
सत्य अहिंसा के पथ पर चल,
जीवन का आनंद उठाओ।
पर माया को लखकर मानव,
लक्ष्य भाव से हैं पलट गए।
अतिशय माया के चक्कर में,
व्यर्थ कर्म में सब डट गए।
सकल जगत में देखो साथी,
कलियुग अतिशय ही है छाया।
अर्थ लोभ के कटु चक्कर में,
बैर द्वेष का लक्षण आया।
माया वैभव के चक्कर में
दूषित होते रिश्ते नाते।
सत्य प्रेम तज कुछ अपने ही,
देख अर्थ बैरी बन जाते।
ओम सदा ही कहता सबसे,
नियत लक्ष्य से हम हट गए।
अतिशय माया के चक्कर में,
व्यर्थ कर्म में सब डट गए।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम