#अतिथि_कब_जाओगे??
#अतिथि_कब_जाओगे??
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आगत बस दो-चार दिनों का, निपट रहे तड़पाओगे।
बस इतना वर दो मुख खोलो, बोलो कब तुम जाओगे।।
सदियों से आतिथ्य निभाने,
की अपनी परिपाटी है।
मान अनन्तर यही प्रथा है,
ऐसी अपनी माटी है।
रीति यहीं हरबार बता तुम, कबतक हमें सताओगे।
बस इतना वर दो मुख खोलो, बोलो कब तुम जाओगे।।
सतयुग त्रेता द्वापर जैसा,
नहीं रहा अब हाल यहाँ।
महँगाई ने कमर तोड़ दी,
दिखते सब बदहाल यहाँ।
आये हर्ष दिये अब जाओ, वर्ना दिल दुखलाओगे।
बस इतना वर दो मुख खोलो, बोलो कब तुम जाओगे।।
दिवस प्रथम हो मोद युक्त सब,
षटरस व्यञ्जन थाल भरें।
स्नेह युक्त पुष्पित शब्दों से,
मनवान्छित व्यवहार करें।
रहे विपुल तो चलन बदलते, देख नहीं फिर पाओगे।
बस इतना वर दो मुख खोलो, बोलो कब तुम जाओगे।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार – ९५६०३३५९५२