अतिथि देवो न भव
निर्देश
आदेश,
अनुनय
या समझो
बहाना।
हे!अतिथि
घर मत आना।
रूखी सुखी,
जो मिले भैया,
सबसे प्यारी
अपनी मढ़ैया।
न कहीं जाता हूँ,
न किसी को बुलाता हूँ।
दो चार हैं यार
न कोई तकरार,
उनसे मिलता प्यार,
बातें करते साकार।
पहले अतिथि आता,
अपना बन जाता,
घर भर जाता,
मन हर्षाता।
जो दो खा लेता,
दिल से दुआएं देता,
न कोई रुआब,
न कोई रौ,
सही अर्थों में होता,
‘अतिथि देवो भव’।
खेती बारी,
दाना पानी,
कैसे हैं सारे
पशु परानी,
निकट बैठ जाते,
सुख दुख बतियाते।
अब का अतिथि,
करता व्यथित,
न आये तो ही अच्छा,
यही बात है कथित।
नातेदारी,
ज्यों व्यापारी,
हर तरफ होड़ है,
सारे बेजोड़ हैं।
नाना न न है,
मामा म म है,
बुआ मौसी नानी,
सबकी एक सी कहानी।
न साला साला,
न जीजा जीजा,
अब तो,
मैगी
मैक्रोनी,
पास्ता,
मोमो ,
पीजा।
अतिथि आएगा,
मोबाइल लाएगा,
दिस दैट करेगा,
मैसेज,चैट करेगा।
न कोई बात चीत,
मोबाइल पर समय बीत,
न प्रीत न प्रतीत,
हर तरह से रीत।
होगा मामूली
दिखेगा शेख,
हर चीज में,
निकले मीन मेख।
लगाव न रंच,
बातों में छल प्रपंच,
अपना मन मोड़ लिया,
अतिथि बनना छोड़ दिया,
अपने घर में
ध्यान रघुवर में।
माया का संसार अधूरा,
राघव है सार पूरा।