अडिग रहिए
मत डरना कीट पतंगों से, मानव समाज के नंगों से।
होता नव निर्माण सहज, मौलिकता वादी जंगो से।।
बस एक दिया दिवाली की, जब अपने लौ पर आती है।
वर्षा ऋतु में जन्मे सभी कीट, सहज भस्म कर जाती है।।
लकड़ी की बनी एक नाव, मजधार पार कर लेती है।
इसके पीछे बस एक मर्म, न रुकती थकती सोती है।।
है सतत लड़ाई जीवन में, मत डरो झुंड से भिड़ जाओ।
है जीत तुम्हारी निश्चित ही, है सत्य साथ मत घबराओ।।
हारा तो अभिमन्यु भी पर, है गाता गौरव गाथा इतिहास।
असत समक्ष नतमस्तक हो, मत करवाना तुम उपहास।।
जन्म तो अपने हाथ नहीं था, मृत्यु कहां है अपने हाथ।
क्यों और किसकी चिंता, खड़े रहो तुम सत्कर्म के साथ।।