अट्ठारह की हुई है वो
बनकर के मजनू फिरता हूँ मैं जिसके प्यार में
अट्ठारह की हुई है वो अबकी बहार में
मतदाता सूची में भी उसका नाम आ गया
कब से तड़प रहा था जिसके इंतजार में
पहली दफा मिला उसे मौका इसीलिए
जाकर खड़ी है बूथ की लम्बी कतार में
स्याही लगा के अँगुली पे निकली जो बूथ से
भूकम्प आ गया मिरे दिल के दयार में
आई है वोट डाल के जब से वो देखिए
छाया है नया नूर सा तन की निखार में
मिलने का वादा याद दिलाया तो वो बोली
आ जाओ वोट डाल के मैं हूँ बजार में
आए निभा के फर्ज़ जब आगोश में ‘संजय’
वो भी खुमार में रही हम भी खुमार में