अट्टहास
लघुकथा
शीर्षक – अट्टहास
=================
दशहरा उत्सव में राम ने रावण के पुतले का दहन करने के लिए जैसे ही बाण का संधान करना चाहा, रावण का पुतला अट्टहास करने लगा l उसकी यह कर्कश आवाज राम भ्रमित कर रही थी l राम से जब नहीं रहा गया तो उन्होने ललकार कर रावण से पूछा – ” अरे रावण! तेरी मंशा क्या है? यह अट्टहास क्यों? जबकि तू जानता है कि आज मैं तेरा और तेरी बुराईयों का अंत कर दूँगा,,,,” l
” मैं कोई वस्तु नहीं हूँ,.. जिसका तुम अंत कर दोगेl हर बरस तुम यही तो करते हो, लेकिन लाभ क्या हुआ ? पुतले तो जला देते हो लेकिन मेरी विचारधारा का अंत कैसे करोगे ? हे राम! मै एक सोच हूँ और मैं ज्यादातर लोगों के मन मस्तिष्क पर स्थापित हूँ “- रावण ने अट्टहास करते हुए कहा l
” इतना बड़ा आरोप तुम कैसे लगा सकते हो इस मानव सभ्यता पर ? कोई भी तुम्हारी विचारधारा को नहीं मानता है ,, इस समाज में तुम्हारा कोई स्थान नहीं है ,,, इस भारी भीड़ को ही देखो हर तरफ सिर्फ, ‘जय श्री राम’ के नारे हैं ” – राम ने भी थोड़ा सा क्रुद्ध होकर कहा l
“हे राम! इन नारों पर मत जाओ, ये इंसान हैं, अंदर से कुछ है और बाहर से कुछ… यहाँ भीड़ में कुछ लोग ऎसे हैं जो अपने भाई का हिस्सा मारकर बैठे हैं ,,, कुछ ऎसे हैं जो स्त्री जाति को भोग की वस्तु समझते हैं,शासक प्रजा का शोषण कर भोग विलास में डूबे हुए हैं,,, हर जगह हाहाकार, रक्तपात और उत्पात मचा हुआ है और विडंबना तो यह है कि मेरे विचारो को मानने वाला ही आज स्वयं को सर्वश्रेष्ठ रामभक्त कहलाता है, ,, अब तुम्ही बताओ मेरा अंत कहाँ हुआ,,,? ” I – रावण के पुतले ने आँखे निकालते हुए कहा l
रावण की कही बातों से राम एक बार तो विचलित हुए लेकिन अगले ही पल उन्होंने अपने आप को संभाला और कहा -” अरे रावण! समाज में अच्छाइयाँ और बुराइयाँ दोनों होती है लेकिन अंत सिर्फ बुराई का होता है अच्छाई का नहीं…”- यों कहकर उन्होंने अपने अग्नि बाण का संधान कर दिया l रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले धू धू कर जल उड़े और पूरा मैदान श्री राम के जयकारों से गूंज उठा l
राघव दुबे
इटावा ( उo प्रo)
8439401034