अटल रहा भरमाय
सुप्रभात मित्रो!
आज काव्य मंचों पर क्या हो रहा है!
पढिए और चिंतन कीजिए।
छंद-दोहा ,
रस-व्यंग,
विधा-पद के माध्यम से।
होड़ लगी सम्मान की, कैसे भी मिल जाय।
चापलूस के कृत्य कर, खुद को श्रेष्ठ बताय।।
चोरी के भी माल को, स्वयं रहे कब्जाय ।
धौंस दिखाते हैं सदा, जमकर रहे सुनाय।।
लंबी यह फहरिस्त है, कौन किसे बतलाय।
मनुवा मेरा वावरा, कुछ भी समझ न आय।।
आज लगा खुद रेस में, कुछ भी मगर न पाय।
अटल रहा भरमाय।।
अटल मुरादाबादी
9650291108