अटल फैसला
लघुकथा
शीर्षक – अटल फैसला
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सुबह से शाम हो गई लेकिन नेहा के चेहरे पर, रवि ने मुस्कुराहट न देखी जो कॉलेज के दिनों में उसके मासूम से चेहरे पर झलकती थी,,, कॉलेज के बाद उसकी शादी उसकी दूर की रिश्तेदारी में हो गयी थी और एक माह बाद ही कार एक्सिडेंट में उसका पति चल बसा,,, आज नेहा की ननद की शादी थी लेकिन उसका मुरझाया हुआ चेहरा रवि की बर्दास्त के वाहर था…
– ” मुझसे तुम्हारा मुरझाया चेहरा देखा नही जाता, मै पुरानी नेहा देखना चाहता हूं, मै बहुत प्यार करता हूं नेहा और तुमसे शादी करना चाहता हूं ” रवि ने उसका हाथ पकड़ कर कहा l
– ” मेरा हाथ छोड़िए, मै तुमसे क्या किसी से भी प्यार नही कर सकती… प्यार करना मेरे लिए पाप है l
-” लेकिन क्यो नेहा? ”
-” तुम समझते क्यों नहीं मै विधवा हूँ और विधवा किसी से प्यार नही कर सकती… विधवा का जीवन सिर्फ एक जिंदा लाश सा होता है उसके लिये खुशिया, प्यार, मुहब्बत सब पाप होता है पाप”
– ” मुझे पता है कि तुम विधवा हो, शादी के एक महीने बाद ही तुम्हारा सिंदूर उजड गया, इसमे तुम्हारा तो कोई दोष नहीं…. उसके साथ ही तुमसे सारी खुशियाँ भी छीन ली गई, तुम्हारी मुस्कुराहट छीन ली गई और तुमने छिन जाने दी, यह अन्याय है नेहा जो तुम अपने साथ कर रही हो” l
-” तुम समझ नहीं रहे हो रवि, यह अभिशप्त जीवन है तुम साथ आए तो तुम्हें भी ग्रहण लग जाएगा ”
-” कुछ भी हो नेहा मेरा फैसला अटल है, आज शादी हो जाने दो उसके बाद मैं अंकल आंटी से बात कर लूंगा…. तुम्हारे हिस्से की खुशियाँ, मुस्कुराहट और मधुमय पल जो इस जहाँ ने तुमसे छीने हैं वो मै तुम्हें देकर ही रहूँगा ”
राघव दुबे
इटावा ( उप्र)
84394 01034…