अटल जी नहीं रहे !
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••••• अटल जी नहीं रहे •••••
स्तब्ध नहीं नि:शब्द हूँ मैं
अश्रुओं का अंतिम लब्ध हूँ मैं
मात्र एक दर्शक इतिहास का
स्वच्छंद नहीं प्रतिबद्ध हूँ मैं
कांटों से रार ठानी नहीं
टेढ़ी – तिरछी चाल जानी नहीं
सौ बार गिरा सौ बार उठा
पथिक, हार तूने मानी नहीं
इक दिन था देश डोल रहा
इक उत्पाती बिलों को खोल रहा
विश्वपंचायत में जग ने देखा
नर – नाहर इक बोल रहा
विपदा जब आई भारी
जागे तब सब नर – नारी
नगर – प्रांत सब घोष हुआ
अब की बारी अटलबिहारी
राजपरिवार से मुक्त कराया देश को
लोकतंत्र है क्या समझाया देश को
भाषा – बोली सब अलग – अलग
फिर भी एक बताया देश को
फूले गुब्बारों जैसा फूले कौन
जनमत कर लांछित झूले कौन
हंसने वालो कल जग हंसेगा
बोल तुम्हारे भूले कौन
नीचों ने नीचे बोल कहे
वो सब छाती तूने सहे
शिष्य नरेन चमकता भुवनभास्कर
कैसे मानूं अटल जी नहीं रहे
नंगों के दिन में लिहाफ लहे
आवरण छिन्न – भिन्न रहे तहे
कुकर्मों की लंका जल रही
कैसे मानूं अटल जी नहीं रहे
सूरज निज – स्थान से जब टले
पतितपावनी जिस दिन नहीं बहे
वाणी तेरी गूँजे तब भी कवि
कैसे मानूं अटल जी नहीं रहे . . . !
समय रुककर गीत नया इक गा रहा
राहें अनजानी नवपथिक छा रहा
चले गए अटल जी नहीं गए
बीच गगन भारतरत्न जगमगा रहा !
वेदप्रकाश लाम्बा
९४६६०-१७३१२ — ७०२७२-१७३१२