अटल एक युग पुरुष
“जगमगाता एक ध्रुवतारा ,
अपना अटल विश्वाश फैलाता
भारत माँ की सेवा करके ,
शून्य में जा विलीन हो रहा !
बांध सका न जिसे मोह भी कोई ,
बन ना पाया शत्रु भी कोई ,
ऐसे हमारे अटल बिहारी ,
जिनके खातिर हर जन आभारी !
कभी थे नेता तो कभी कवि ,
कभी हास्यकार बन जाते थे ,
एक ही जीवन में वो ,
न जाने कितने जीवन जी लेते थे !
मंद मंद मुस्काकर भी जो ,
भाषण में कटाक्ष कह जाते थे ,
पीठ पे छूरा घोपने वालों,
को भी सबक सिखाते थे !
मृत्यु से जो बेख़ौफ़ थे ,
और इरादों से भी जो अटल थे !
ऐसे मेरे अटल बिहारी ,
जिनको नतमस्तक मेरा मन है ,
उस अजातशत्रु के लिए,
तो मेरे पास आज शब्द भी कम है !