अटरू ली धनुष लीला
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कहानी: “अटरू की धनुषलीला – एकता का प्रतीक”
अटरू, राजस्थान के ह्रदय में बसा एक छोटा सा गाँव, जहाँ हर साल एक अद्वितीय आयोजन होता है—धनुषलीला। यह आयोजन पिछले 125 वर्षों से गाँव की धरोहर बना हुआ है। गाँव के हर व्यक्ति के जीवन का यह हिस्सा बन चुका है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब। पूरी अटरू को दुल्हन की तरह सजाया गया है।
धनुषलीला में भगवान राम के शिवजी का धनुष तोड़ने की घटना का मंचन होता है, और यह लीला केवल नाटक नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा का उत्सव है। इस लीला के लिए अटरू के लोग महीनों पहले से तैयारी में जुट जाते हैं। इस साल भी गाँव के लोग उत्साह से भरे हुए थे। हर कोई अपनी भूमिका को श्रद्धा और समर्पण से निभा रहा था।
रमेश, गाँव का एक साधारण किसान, भगवान राम का किरदार निभा रहे थे, और लक्ष्मण का किरदार उनके छोटे भाई सुरेश ने लिया। सीता , ताड़का का किरदार भी गाँव के पुरुष , निभा रहे थे।। जैसे-जैसे धनुषलीला का मुख्य दिन पास आया, गाँव में रौनक बढ़ती गई। आसपास के गाँवों से लोग इस आयोजन को देखने आ चुके थे। गाँव के हर घर में गुलाबजामुन जैसे स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए जा रहे थे, क्योंकि यह मिठाई यहाँ के त्योहारों का अभिन्न हिस्सा थी।
धनुषलीला का दिन आया, और मैदान में भारी भीड़ जुटी। जैसे ही भगवान राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा, मैदान में जयकारे गूंज उठे। लेकिन तभी मंच पर एक नया मोड़ आया। कुछ पात्र, जिनके हाथ में जलते हुए चिराग थे, मंच पर दौड़ते हुए आए और पूरे गाँव को संदेश दिया, “परशुराम जी क्रोधित होकर आ रहे हैं!” यह सुनते ही भीड़ में खामोशी छा गई। हर कोई परशुराम जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा।
जैसे ही परशुराम का किरदार मंच पर आया, हर किसी की नजरें लक्ष्मण पर टिक गईं। परशुराम जी ने क्रोध से भरी आँखों से धनुष टूटने का कारण पूछा। पूरा गाँव सांस रोककर खड़ा था, क्योंकि उन्हें पता था कि अब वह दृश्य आने वाला है, जो हर साल उनके दिल को छू जाता है—लक्ष्मण और परशुराम का संवाद।
सुरेश, जो लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे थे, ने अद्वितीय आत्मविश्वास से कहा, “हे परशुराम जी, अगर कोई धनुष टूट गया है, तो आप इसका दोष किस पर लगा रहे हैं? क्या यह कोई साधारण धनुष था जिसे तोड़ना असंभव था? और अगर कोई क्षत्रिय ने इसे तोड़ा है, तो यह उसकी शक्ति का प्रमाण है।”
परशुराम और लक्ष्मण के बीच की यह संवाद अद्भुत था। उनकी वाणी में गर्व और सम्मान झलक रहा था। हर बार इस संवाद को सुनने वाले गाँव के लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे, क्योंकि इसमें न सिर्फ रामायण का अध्याय जीवंत होता था, बल्कि गाँव के एकता और साहस का संदेश भी छिपा होता था।
धनुषलीला के इस महान दृश्य के बाद, मिठाइयाँ बांटने का समय आया। गुलाबजामुन की मिठास, जो इस आयोजन का एक अनिवार्य हिस्सा थी, गाँववासियों के बीच भाईचारे को और गहरा कर देती थी। गुलाबजामुन को यहाँ विशेष महत्व दिया जाता था, क्योंकि इसकी मिठास का प्रतीक था गाँव की एकता और मेल-जोल।
साथ ही, एक और खास परंपरा थी जो इस आयोजन को और भी खास बनाती थी। धनुषलीला में गाँव के लोग मोगरे की मालाएँ धारण करते थे। यह मोगरे की माला शांति और सादगी का प्रतीक मानी जाती थी, और इसे पहनकर गाँववासी यह संदेश देते थे कि चाहे कितनी भी कठिनाई क्यों न आए, वे हमेशा एकजुट रहेंगे।
धनुषलीला के समाप्त होते ही गाँव में एक नई ऊर्जा और भाईचारे का माहौल छा जाता। हर व्यक्ति एक-दूसरे से गले मिलता, मिठाइयाँ बांटता, और अगले साल के आयोजन की प्रतीक्षा में होता।
यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक था, बल्कि गाँव की एकता, प्रेम और सामूहिक जिम्मेदारी का भी सजीव उदाहरण था। अटरू की धनुषलीला ने पिछले 125 वर्षों से गाँव को न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया था, बल्कि हर वर्ग के लोगों को आपस में जोड़ने का भी काम किया था।
समाप्त।
कलम घिसाई
अटरू 9664404242