“अटपटा प्रावधान”
“अटपटा प्रावधान”
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देखो, कैसा ये “अटपटा प्रावधान”;
मिटा रहा देश से बुद्धि और ज्ञान।
आया अब देश में देखो,ऐसा क्षण;
दुखी है आज , हर एक ज्ञानी मन।
तड़प रहे हैं आज , बहुतों मेधावी;
यहां पर है , ऐसी आधी आबादी।
अब योग्यता का ही, हो रहा हनन,
सबको करना होगा, इसपर चिंतन।
आख़िर कब तक मचेगी, यह तबाही;
कौन बनेगा, बुद्धि-ज्ञान का सिपाही।
नीति कैसी है , भला ये लाभकारी;
की मूरख हो, विद्वान पर ही भारी।
ज्ञानी आत्मा है अब , दुख का आदी;
मिली कैसी ये, संवैधानिक आज़ादी।
घृणा -द्वेष आपस मे , इससे ही आये;
देश में भ्रष्ट्राचार भी सदा, ये ही बढ़ाए।
लाता ये कार्य में , निपुणता का अभाव;
देश की व्यवस्था पर पड़ता बुरा प्रभाव।
ये नहीं है अब राष्ट्र के लिए, हितकारी;
बस यह है एक ,”राजनैतिक लाचारी”।
सदा ये, उन्नति पथ का है व्यवधान;
बस है यह एक, “अटपटा प्रावधान”।
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स्वरचित सह मौलिक
… ✍️ “पंकज कर्ण”
…… …कटिहार।।