*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
चीर द्रोपदी का कृष्ण बढ़ाया बहुत था।
द्रोपदी को पाण्ड़वों ने लजाया बहुत था।।
पतिव्रता ने मुनि से वस्त्र बढ़ाने का वर।
फिर बहिन ने भैय्या को बुलाया क्यों था।।
काश कोई सुलझायें मेरी यह उलझन।
दुशासन ने दुस्साहस दिखाया बहुत था।।
धर्म के आगे अधर्म क्या चलेगी साजिश।
चक्रधारी का पाण्डवों पे साया बहुत था।।
चक्रबीयू पूर्ण तरह से न आये अभिमन्यु को।
कुरुक्षेत्र में रण बांके पे तरस खाया अब था।।
चक्रधारी श्री कृष्णजी यह लीला थी तुम्हारी।
अज्ञानी को अज्ञानता में दर्श दिखाया कब था।।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झांसी बुन्देलखण्ड