*अज्ञानी की कलम*
अज्ञानी की कलम
लौटना आसान नहीं है गांव कि राहों में।
वीरानें सी खेती न है पीपल गांव में।।
मात-पिता गुरु की कौन सुनते कहां।
चापलूसीं गायक एक से बढ़कर चांव में।।
न सुनने मिलें बंशी कटे वृक्ष खारों में।
अब डी जे बजवाते है शहर हो गांव में।।
हरियाली बनावटी देखती चाहे जहां।
लौटके वापिस न हो पग चलें पांव में।।
भूले बिसरे गुजरें जमानें न चांव में।
शिक्षा बिकतीं गली गली कहीं जांव में।।
मुरझाए चेहरे मन में सिकवे गिले।
नफ़रतों का बीज बोता नर जहां में।।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झांसी उ•प्र•